बीएस येदियुरप्पा की सीट क्यों छीनी गई? आइए जानिए
कर्नाटक : दक्षिण में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को अगर किसी ने जीत दिलाई थी वे थे कर्नाटक के बीएस येदियुरप्पा। येदियुरप्पा कमल खिलाने वाले पहले नेता थे लेकिन आज उनके साथ ऐसा क्यों हुआ? हालांकि येदियुरप्पा चार बार कर्नाटक के सीएम बने लेकिन कभी भी 5 साल पूरे नहीं कर पाए अगर उनके सभी कार्यकालों को जोड़ा जाए तो वह मात्र सवा 5 साल ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे।
ठीक 2 साल पहले जब ऑपरेशन कमल सफल हुआ जिसमें कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार को गिरा कर अपने पाले में 22 विधायकों को करने के बाद इनाम स्वरूप येदियुरप्पा को दोबारा से मुख्यमंत्री की सीट पर बैठने का मौका मिला लेकिन अपनी सियासत की ताकत के बलबूते इस सीट पर वे 2 साल टिके रहे लेकिन अंत में उनकी ही पार्टी के आलाकमान नेताओं ने उनको यह संकेत दे दिया कि अब वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री आगे नहीं रहेंगे मतलब साफ है कि अब कर्नाटक में भाजपा का नया चेहरा कोई और होगा ।
हालांकि बड़ी बात यह है कि येदियुरप्पा की सीट क्यों छीनी गयी? येदुरप्पा वे व्यक्ति हैं जो कि कर्नाटक में 100 सीटों पर प्रभाव डालने वाले लिंगायत समुदाय से आते हैं । लिंगायत समुदाय एकजुट किसी नेता के नाम पर हुआ है तो वे येदुरप्पा हैं। हालांकि येदियुरप्पा अंत तक अपनी सीट को बचाने के लिए प्रदेश के लिंगायत समुदाय के मठों के मठाधीशों को अपने पक्ष में करते रहे और उनके द्वारा पार्टी को यह संकेत देते रहे कि उन्हें कर्नाटक के सर्वमान्य नेता की उपाधि मिल रखी है।
लेकिन पार्टी के कड़े आदेश के बाद येदियुरप्पा की एक न चली और उनको इस्तीफा देना पड़ा उनके ऊपर यह आरोप थे कि वे अपनी ही पार्टी के विधायकों के काम पूरे नहीं करवा पा रहे थे, उनके दोनों बेटे और बेटी पिछले दरवाजे से सरकार चला रहे थे और हस्तक्षेप कर रहे थे जो कि प्रदेश भाजपा और दिल्ली के नेताओं को रास नहीं आ रहा था। साथ ही उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं।
अब देखना होगा की भाजपा लिंगायत समुदाय की नाराजगी को कैसे दूर कर पाएगी ?