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जब कांग्रेस में हुआ कमलनाथ के इस फ़ैसले का विरोध, बैकफुट पर पार्टी आई, फ़ैसला लिया वापस

भोपाल : नगरीय निकाय चुनाव से पहले कांग्रेस को अपनों के बागी होने का डर सताने लगा है, यहीं वजह है कि पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं में असंतोष रोकने के लिए लिखित सहमति लेने का तरीका निकाला था। पार्षद के लिए दावेदारी जताने वाले कार्यकर्ताओं से शपथ पत्र लेने का फैसला किया था, शपथ पत्र में वादा करवाया जा रहा था कि यदि उनसे ज्यादा योग्य कोई उम्मीदवार होगा तो दावेदार निर्दलीय तौर पर नामांकन दाखिल नहीं करेगा।

वहीं, कांग्रेस इस शपथ पत्र के प्रयोग को एक फार्मूले के तौर पर लागू करना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस के अंदर ही इस फार्मूले को लेकर विरोध शुरू हो गया था। यही कारण है कि पार्टी अपने ही फैसलेपर बैकफुट पर चली गई।

दरअसल, कांग्रेस में टिकट की खींचतान रोकने के लिए पीसीसी चीफ कमलनाथ ने इस बार कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक प्रोफार्मा तैयार किया, जिसने टिकट के दावेदारों और दावेदारों की पैरवी करने वाले उनके आकाओं सबको हैरान कर दिया। ये कांग्रेस के उन दिग्गज कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा इम्तेहान था जो अपने समर्थकों को टिकट दिलाने का दम दिखा रहे थे।

बता दे कि निकाय चुनाव के बहाने कमलनाथ का विधानसभा चुनाव 2023 और 2024 की जमीन तैयार करने का प्लान था। उन्होंने पार्टी में गुटबाजी और कलह फैलाने वाले नेताओं को किनारे लगाने की तैयारी की थी। कमलनाथ ने शर्त ये रखी है कि टिकट उसी नेता के समर्थकों को दिया जाएगा जो जीत की गारंटी दे जाएं। लेकिन कांग्रेस के अंदर ही इस फार्मूले को लेकर विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद पार्टी ने ये फैसला वापस ले लिया।

बहरहाल, अब भले ही पार्टी ने अपना फैसला वापिस ले लिया हो, लेकिन कार्यकर्ता निर्दलीय चुनाव ना लड़ें इस तरह का शपथ पत्र भरवाना उसी का नमूना था। अपने समर्थकों को जीत दिलाना नेताओं की भी नैतिक जिम्मेदारी है।

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