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स्कॉटलैंड मुफ्त सैनेटरी उत्पाद देने वाला बना विश्व का पहला देश, भारत अब भी निभा रहा रुढ़ीवादी परंपराएं

स्कॉटलैंड मुफ्त सैनेटरी उत्पाद देने वाला बना विश्व का पहला देश, भारत अब भी निभा रहा रुढ़ीवादी परंपराएं

पीरियड्स,,,,एक ऐसी प्रक्रिया जो कुदरती तौर पर सारी महिलाओं को हर महीने होती है और ये कभी भी कही भी हो सकती है इसके लिए किसी को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता है लेकिन पीरियड्स के दौरान कई देशों में महिलाओं के लिए अलग-अलग परंपराएं जरुर गढ़ी गई है। इन परंपराओं के बारे में हम जरुर बात करेंगे लेकिन उससे पहले एक बड़ें बदलाव की खबर से आपको रुबरु करा दें। जी हां इस बदलाव की पहल की है स्कॉलैंड ने। आपको बता दें कि महिलाओं के स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए स्कॉटलैंड की सरकार ने बीते दिन एक बड़ा कदम उठाया है। इस बिल के तहत स्कॉटलैंड की हर महिला नागरिक को जल्द ही मुफ्त टैंपोन और सैनेटरी उत्पाद मुहैया करवाया जाएगा। इस बिल को पास करने के लिए संसद में मौजूद 112 सदस्यों ने मंजूरी दी है।

इस योजना की पूरी लागत लगभग 22 करोड़ रुपए सालाना आएगी

सैनेटरी उत्पाद बिल स्कॉटलैंड का प्रस्ताव मंत्री मोनिका लेनन ने संसद में रखा था। संसद में मौजूद 112 लोगों ने पहले चरण में इसे मंजूरी दी है। अब इस बिल को आगे बढ़ाया जाएगा। इस कानून के बनने के बाद सामुदायिक भवन, यूथ क्लब और मेडिकल स्टोर समेत कई सार्वजनिक स्थानों में सैनेटरी नैपकिन मुफ्त मिलेंगे। इससे पहले भी साल 2018 में स्कॉटलैंड सरकारी स्कूलों में मुफ्त सैनेटरी उत्पाद देने वाला पहला देश बन चुका है। इस बिल में सालाना 22 करोड़ रुपए का खर्च आने वाला है।

अब आपको बतातें है भारत सरकार की योजना की हालात के बारे में

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सभी सरकारी में मुफ्त सैनेटरी नैपकिन देने की योजना बनाई जा चुकी है। सरकार द्वारा कई सरकारी स्कूलों में सैनेटरी नैपकिन वैंडिग मशीनें लगाई गई हैं। मगर कुछ ही समय में इन मशीनों की हालत खस्ता हो गई है। कुछ सरकारी स्कूल ऐसी भी हैं जहां इस मशीन के इस्तेमाल के लिए बच्चियों को पैसे देने पड़ रहे हैं। वही भारत में सैनेटरी नैपकिन योजना की शुरुआत साल 2018 में की गई थी। इसके अंतर्गत देश के 5.500 जन औषधि केंद्रों में ढाई रुपए प्रति सैनेटरी नैपकिन बेचा गया था। करीब एक साल के अंदर ही 2.2 करोड़ सुविधा सैनेटरी नैपकिन की बिक्री की गई थी। साल 2019 में इनके दामों को घटाकर मात्र एक रुपए कर दिया गया है। एक शोध में पता चला है कि 40 प्रतिशत महिलाएं सावधानी ना रखने के कारण संक्रमित हो जाती हैं। बार-बार संक्रमित होने से महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा बना रहता है। देश में सालाना सर्वाइकल कैंसर के लगभग 1,32,000 केस सामने आते हैं, जिनमें से केवल आधी महिलाओं का ही उपचार हो पाता है। दुनियाभर के सर्वाइकल कैंसर के मामलों से मरने वालों में एक तिहाही भारत की महिलाएं हैं।

अब आपको बताते है भारत की कुछ ऐसी परंपराओं के बारे में जिसे सुनकर आपको भी एहसास होगा कि हम अब भी कितने पीछे है

  • भारत के कई हिस्सों में पीरियड के दौरान लड़कियों के कई जगह मंदिर जाने से लेकर उनके पूजा पाठ में शामिल होने तक की मनाही होती है। वहीं, महिलाओं के पीरियड्स से जुड़े कुछ रीति-रिवाज भी हैं, सबसे पहले बात कर्नाटक की करते हैं। यहां एक प्रथा के मुताबिक, जब पहली बार किसी लड़की की माहवारी शुरू होती है तो उसे दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है। इतना ही नहीं, आसपास की महिलाएं उस लड़की की आरती भी उतारती हैं। दक्षिण के राज्य आंध्र प्रदेश और केरल में भी ऐसी प्रथा आम है। दक्षिण भारत में प्रचलित एक अन्य प्रथा के अनुसार पहली बार उम्र के इस पड़ाव में आने वाली लड़कियां अपने साथ नींबू या फिर लोहा साथ में रखती हैं, ताकि बुरी ताकतें उनके करीब न आएं।
  • निश्चित तौर पर इस प्रथा को सुनने के बाद आप हैरान जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स आते हैं, तो निकलने वाले रक्त को गाय के दूध और नारियल के तेल साथ मिलाकर पिया जाता है। मान्यता है कि माहवारी का रक्त पीने से शरीर में नई ताकत और स्फूर्ति आती है। वहीं, यह स्मरण शक्ति बढ़ाने और खुश रखने में भी काफी उपयोगी है।
  • ये परंपराएं आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं को निभाने के लिए मजबूर किया जाता है जिसके लिए न सिर्फ सरकार को बल्कि आम लोगों को अपने घर से इन परंपराओं को तोड़ने की शुरुआत करनी चाहिए। और बीमारियों की चपेट में आती महिलाओं को बचाने की और पीरियड्स के दौरान उनके अशुद्ध मानने के बजाय उनके दर्द और तकलीफ को समझने का प्रयास करना चाहिए।

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