नागरिकता संशोधन विधेयक पर पूर्वोत्तर भारत में प्रदर्शन

- नागरिक संशोधन विधेयक शीतकालीन सत्र में लाने की तैयारी
- पूर्वोत्तर भारत में प्रदर्शन
- धर्म के आधार पर नागरिकता हो सकती है तय
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में अपने पूर्वोत्तर दौरे के वक्त एक बात कही कि नागरिकता संशोधन विधेयक को फिर से संसद में पेश किया जाएगा। अब इस बात से ये शंका पैदा हो रही है कि भाजपा संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन बिल को पेश करने की पूरी तैयारी में हैं। इसी बात को लेकर असम तथा पूर्वोत्तर के करीब सभी राज्यों में विरोध शुरू हो गया हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक में प्रस्ताव
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS Legislative Research) के अनुसार, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी हैं। अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।
इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। वही पहले यह समय सीमा 11 साल थी।
विधेयक पर विवाद का कारण
इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया हैं। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा हैं। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई हैं।