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Polar Bear : अपने ही बच्चों को मारकर खा रहे हैं ध्रुवीय भालु, एक शोध में हुआ सनसनीखेज खुलासा

Pic Source : Wildphoto

Bhopal Desk,Gautam
एक रूसी वैज्ञानिक ने खुलासा किया है कि आर्कटिक में जानवर एक-दूसरे को खा रहे हैं क्योंकि यहाँ की बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है। इसके कारण इनके आदतों में गंभीर बदलाव आये हैं। बढ़ते तापमान के कारण बर्फ का स्तर गिरता जा रहा है और बिज़नेस कम्पनीज अब धीर-धीरे उन जगहों पर अपने कारखाने लगा रही हैं जहाँ पर ध्रुवीय भालुओं के लिए शिकार की सबसे ज्यादा गुंजाइश थी। खाने की कमी के कारण और बदलते तापमान की वजह से वह एक -दुसरे का ही शिकार कर रहे हैं।

माताएं अपने बच्चों को खा रही हैं
शोधकर्ताओं के अनुसार इन घटनाओं को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण आर्कटिक में मानवीय गतिविधियों में वृद्धि भी हो सकती है। ये सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि मानव की गलतियों से अलग-अलग प्राणियों पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका एक भयावह उदहारण भी है। शोधकर्ताओं (Researchers) का मानना ​​है कि ये जानवर एक-दूसरे पर जानलेवा हमला कर रहे हैं, क्योंकि उनकी पेट भरने के श्रोतों में बड़ी कमी आ गई है। इसी वजह से बड़े नर और मादा छोटे  शावकों पर हमला कर रहे हैं क्योंकि वे आसान लक्ष्य हैं। सबसे ज्यादा विचलित करने वाली बात यह है कि माताएं अपने बच्चों तक को खा रही हैं।

 

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जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ ये सब
पिछले 25 वर्षों में आर्कटिक में बर्फ का स्तर पहले के मुकाबले 40 प्रतिशत कम हो गया है। ध्रुवीय भालू पानी में तैरने वाले सील का शिकार करने के लिए समुद्री बर्फ का उपयोग करते हैं, लेकिन बर्फ की कमी के कारण किनारे पर ही शिकार करने को मजबूर हो रहे हैं। बर्फ की कमी के कारण उनको अपना आहार नहीं मिल पा रहा है और बिना भोजन के बिना ज्यादा दिन तक जीना ऐसे विशालकाय जानवर के लिए असंभव है।

फॉसिल-फ्यूल निकालने के लिए मनुष्य इनके घर पर कब्ज़ा रहे हैं। क्या होता है फॉसिल-फ्यूल यानी की जीवाश्म ईंधन।
पेट्रोल और प्राकृतिक गैस करोड़ों वर्ष पूर्व बने थे। यह मुख्यतः नदी या झील के बहुत नीचे होते हैं। जहाँ यह बहुत उच्च ताप और दाब के कारण ईंधन बन जाते हैं। जिसमें यह अलग अलग परत के रूप में होते हैं। जिसमें पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि के अलग अलग परत होते हैं। अलग अलग गहराई में अलग अलग ताप और दाब मिलने के कारण यह असमानता आती है।

एक शोधकर्ता कि माने तो सर्दियों में ओब की खाड़ी से बेरेंट्स सागर तक का जो क्षेत्र है  है उसी क्षेत्र में ध्रुवीय भालू शिकार करते थे। लेकिन अब यह क्षेत्र LNG (Liquid Natural Gas) ले जाने वाले जहाजों के लिए एक व्यस्त मार्ग बन गया है। जिससे भालुओं को अपना शिकार नहीं मिल पा रहा है।

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एक अन्य रूसी वैज्ञानिक, व्लादिमीर सोकोलोव, जिन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग स्थित आर्कटिक और अंटार्कटिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ कई अभियानों का नेतृत्व किया है उन्होंने कहा कि इस साल ध्रुवीय भालू मुख्य रूप से उत्तर में स्पिट्सबर्ग द्वीप पर असामान्य रूप से गर्म मौसम से प्रभावित हुए थे।

बर्फ में दबाते हैं अपना शिकार ताकि दोबारा खा सकें
एक और अध्ययन में यह बात खुलकर सामने आई है जिस किसी का भी यह ध्रुवीय भालु शिकार करते हैं उसको कई दिनों तक संभाल कर रखते हैं ताकि वह इसे भूंख लगने पर दोबारा खा सकें। ऐसा करने के लिए वह अपने शिकार को बर्फ और धुल में दबा देते हैं ताकि वह खराब न हो। यह भालुओं का प्राकुर्तिक व्यवहार है जिसे कैशिंग नाम दिया गया है।

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तकरीबन सभी धर्मग्रंथो में कहा गया है कि एक समय ऐसा जरूर आएगा जब हम मानव से नरभक्षी बन जायेंगे और मानव सभ्यता का अंत वही से शुरू हो जाएगा। यदि इस शोध के ऊपर ध्यान दिया जाए तो मानवीय लालच के कारण ही आज ध्रुवीय भालु नरभक्षी के रूप में तब्दील हो रहे हैं ऐसे में क्या यह नहीं माना जाए की हमारे धर्मग्रंथो की बातें जिन्हें हम ढकोसला बताते आये हैं कहीं न कहीं सच साबित होते दिख रहे हैं। हम यही सवाल आपके लिए छोड़ जातें हैं।

(यह जानकारी विभिन्न साइट्स के माध्यम से उठाई गयीं हैं और पूर्णतः एक शोध पर आधारित है)

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