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एमपीपीएससी चयनित महिलाओं ने किया विरोध प्रदर्शन ,टॉपर्स की अब तक नहीं हो सकी नियुक्ति ,जानिए पूरा मामला

भोपाल से गरिमा श्रीवास्तव की रिपोर्ट :–  डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के बाद अब मध्यप्रदेश की एमपीपीएससी से चयनित हुई  महिला असिस्टेंट प्रोफेसर के प्रदर्शन का मामला सामने आया  है ,बताते चलें की अपनी मांगें पूरी न होने की वजह से महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है ,
बताया जा रहा है कि महिलाओं ने जमकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की और साथ ही साथ कैंडल मार्च द्वारा भी अपने क्रोध को प्रदर्शित किया।
असिस्टेंट प्रोफसर्स 15 महीनों से नियुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पर अब न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या करके उच्च शिक्षा विभाग ने मेरिटोरियस 91महिलाओं को प्रभावित कह कर नियुक्ति से वंचित कर दिया। जिसके लिए उन्होंने मंत्री परिषद् में भी अपनी परेशानी बताई पर कोई उचित कार्रवाई न देखकर उन्हें अपना क्रोध प्रदर्शित करने के लिए कैंडल मार्च ,सरकार के खिलाफ नारेबाजी का सहारा लेना पड़ा।
फिलहाल प्रदर्शन के बाद उच्च शिक्षा मंत्री ने मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायालय में शपथ पत्र प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया है।
इसके साथ ही विधि एवं कानून मंत्री पी सी शर्मा ने भी मेरिटोरियस महिलाओं की नियुक्ति को रोककर रखना अन्यायपूर्ण मानते हुए मामले को तुरंत संज्ञान में लिया तथा मुख्यमंत्री को भी विभिन्न माध्यमों के द्वारा उनके संज्ञान में लाया गया, किन्तु अभी भी उच्च शिक्षा विभाग उक्त दिशा में कोई कार्य करने को तैयार नहीं हैं।

आपको बता दें कि उच्च शिक्षा विभाग के सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 9037 में से 4727 पद खाली हैं। इनमें से करीब 3379 पदों पर भर्ती के लिए विभाग की डिमांड पर मप्र लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) ने ऑनलाइन परीक्षा आयोजित कर लगभग 2719 उम्मीदवारों का चयन किया। वहीँ दूसरी तरफ टॉपर महिलाएं अपनी नियुक्ति को लेकर संघर्ष कर रही हैं। उनकी नियुक्ति अभी तक नहीं हो सकी।

 महिलाओं ने सरकार और प्रशासन को चेतावनी देते हुए यह बात कही है कि अगर अब भी उनकी मांगें नहीं पूरी की जाएँगी तो वह आमरण अनशन करने पर मज़बूर हो जाएँगी।

 

 

विस्तार से जानिए आखिर क्यों कर रही हैं महिलाएं प्रदर्शन :-

म.प्र. लोक सेवा आयोग द्वारा सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति हो रही है। गौरतलब है की 91 महिलाओं को सर्वाधिक नम्बर लेन पर भी नियुक्ति नहीं दी गई जिसके चलते इनका क्रोध भयावह रूप धारण कर लिया। उनका कहना है कि क्या टॉपर होना भी गुनाह है ,अगर हमने अधिक अंक हासिल किये हैं तो क्या यह गलत है , नम्बर ज़्यादा पाने की वजह से हमारी नियुक्तियां रोकना क्या जायज़ है?  ऐसे बहुत सारे प्रश्न उन महिलाओं के हैं जिन्होंने अच्छे अंक द्वारा परीक्षा उत्तीर्ण किया है।

बता दें की महिला रिर्जवेशन का मामला उच्चन्यायालय में लम्बित है।
 इस परीक्षा में 18 विषयों में अनारक्षित महिला सीट पर चयनित आरक्षित वर्ग की 91 महिलाओं को ज्यादा नम्बर लाने पर भी नियुक्ति नहीं दी जा रही है।

इन महिलाओं का कहना है कि हमारे प्राप्तांक आरक्षित वर्ग के पुरुष और महिलाओं दोनों से अधिक हैं पर फिर भी हमें नियुक्ति अब तक प्राप्त नहीं हुई।
इतने अंक हासिल करने के बाद भी हमें हाथ पर हाथ धरे बैठना पड़ रहा है ,आखिर कब तक हम इंतज़ार करेंगे ?अब सब्र का बांध टूट चुका है ,

अंग्रेजी भूगोल मनोविज्ञान आदि विषयों में तो प्रथम स्थान पर चयनित महिला को इसी कारण नियुक्ति नहीं दी गई।
जबकि चयन सूची में सबसे अंतिम स्थान पर चयनित अभ्यर्थी को भी नियुक्ति दे दी गई।
क्या यही न्याय है सरकार का ?
प्रथम स्थान पर होने वालों को नियुक्ति नहीं दी जा रही है जबकि अंतिम स्थान पर चयनित व्यक्ति की नियुक्ति पहले ही हो गई।
बता दें कि पहले इन्हें सबके साथ चॉइस फिलिंग से विभाग ने रोका था, तब माननीय उच्च न्यायालय ने इन मेरिटोरियस वूमेन को प्रभावित ही नहीं माना और चॉइस फिलिंग की अनुमति दी तो फिर अभी जॉइनिंग से इन्हें कैसे और क्यों रोका गया?
क्या टॉपर होना ही इनका गुनाह है? क्यों कोर्ट द्वारा पारित आर्डर की सही व्याख्या नहीं की जा रही है ?क्या यह सब कुछ जान बुझ कर किया जा रहा है या कोई और वजह ?
किन्ही भी प्रश्नों का कोई भी जवाब नहीं है जिसके कारण महिलाओं को प्रदर्शन करना पड़ा। वह अपने हक़ के लिए संघर्ष कर रही हैं और तब तक करेंगी जब तक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल जाते।

 

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