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जबलपुर जेल में हुई नेताओं से मुलाकात, और मैं जनसंध एवं भाजपा से जुड़ गया – अजय विश्नोई

मैं राजनीति में कैसे आया?

मैं भाजपा में कैसे आया?

13 मई को सुबह-सुबह सबसे पहले अपने प्रथम राजनैतिक गुरु ‘श्री मेघराज जी जैन’ को प्रणाम किया। उनका जन्मदिन था। तभी मन में भाव आया कि अपनी राजनीति की यात्रा आपके साथ बांटू।

लीजिये…पढ़िए !

छात्र राजनीति का स्वर्णिम काल

आज से ठीक 50 वर्ष पूर्व 1970 में, मेरे पिताश्री स्व. डॉक्टर गौरी शंकर विश्नोई जी ने जबलपुर के साइंस कॉलेज से मेरा नाम कटवा कर कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के वेटनरी कॉलेज में लिखवा दिया। तब मैं मात्र 18 वर्ष का था। तब कृषि विश्वविद्यालय, प्रदेश का इकलौता विश्वविद्यालय हुआ करता था। इसके कॉलेज इंदौर, मऊ, सीहोर, ग्वालियर, रायपुर और रीवा में थे। 5 सालों के इस वेटनरी कोर्स में पहला साल कृषि कॉलेज जबलपुर में पढ़ना पड़ता है।

पहले ही साल में कृषि विश्वविद्यालय में मेरी पहचान एक छात्र नेता के रूप में हो गई। दूसरे साल से हमारी क्लास वेटरनरी कॉलेज, सिविल लाइंस में शिफ्ट हो गई। इस साल से मै एक छात्र नेता के रूप में स्थापित हो गया।

मैं कभी चुनाव लड़ता नहीं था। हमेशा लड़वाता था। परंतु आज तक लोगों को यह गलतफहमी है कि, मैं कृषि विश्वविद्यालय का अध्यक्ष रहा हूँ।

मेरी छात्र राजनीति का मैदान, खेल के मैदान से मजबूत हुआ। मगर आपसी झगड़ों के कारण खेल रुकवा दिया गया था। मैंने झगड़े शांत करवाए ताकि खेल प्रतियोगिताएं फिरसे शुरू हो सके। फलस्वरूप खेल एक बार फिर प्रारंभ करवाने में मुझे सफलता मिली। यदि कोई भी खेल की टीम, खेलने की लिए किसी भी शहर, जैसे -रायपुर, इंदौर, रीवा, ग्वालियर जा रही हो, तो मुझे उनके साथ जाना पड़ता था। मैं स्वयं तो सिर्फ हाँकी खेलता था। मैंने विश्वविद्यालय की टीम में भी खेला।

पहली मुलाकात में हुआ था कुलपति से विवाद

1972 में विश्वविद्यालय में एक नए कुलपति आये। इनका नाम था, डॉक्टर चंद्रिका ठाकुर। वो बिहारी थे। मध्यप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल, श्री सत्यनारायण सिन्हा जी का वरद हस्त उन्हें प्राप्त था। आते ही कुलपति जी ने दादागिरी और नेतागिरी दिखाना शुरू कर दी। कुलपति श्री ठाकुर ने सभी कॉलेजों के छात्र नेताओं की एक मीटिंग बुलवाई। मुझे भी बुलाया गया। पहली ही मुलाकात में किसी अनैतिक बात पर मेरा उनसे विवाद हुआ, और डॉक्टर ठाकुर से झगड़ा हो गया। मैंने तभी ठान ली कि इस कुलपति को जबलपुर से वापस भगाना चाहिए। अगले 2 साल डॉक्टर चंद्रिका ठाकुर के विरोध में लड़ते हुए बीते। मैं प्रदेश के सभी कॉलेजों में गया। छात्रों का संगठन बनाया। भोपाल विधानसभा भी गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री प्रकाश चंद सेठी से मिला। राज्यपाल श्री सत्यनारायण सिन्हा से भी मिला। कड़ी मशक्कत के बाद छात्र संगठित हो गए। धीरे-धीरे हमारे साथ कर्मचारी वर्ग और शिक्षक भी जुड़ गए।

40 दिनों तक किया संघर्ष

1974 में हम लोगों ने कुलपति के कार्यालय में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। तब कुलपति ने विश्वविद्यालय बंद करा दिया था और हॉस्टल भी खाली करवा दिया था। फिर अगले 40 दिन तक विश्वविद्यालय खोलने का संघर्ष किया। अंततः विश्वविद्यालय खुला। मैंने तब एक पुस्तिका भी लिखी थी। वह भी छपवाई थी। पुस्तिका का शीर्षक था – “छात्र जागृति के 40 दिन” फिर भोपाल का चक्कर शुरू हुआ। लेकिन आज मैं बहुत लंबी बात नहीं करूंगा।

अजय विश्नोई जिंदाबाद के लगे थे नारे

अंततः हमारे उग्र विरोध को देखकर एक रात कुलपति चंद्रिका ठाकुर चुपचाप जबलपुर छोड़कर भाग गए और हम सफल हो गए। दूसरे दिन कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के ऑडिटोरियम में छात्रों, कर्मचारियों और अध्यापकों की एक संयुक्त विजय सभा हुई। मुझे आश्चर्य हुआ की हमारे प्रोफेसर श्री वर्मा, माइक से नारे लगवा रहे थे। वे नारे थे – अजय विश्नोई जिंदाबाद!

मेरे छात्र जीवन का एक और पहलू है

सेमेस्टर सिस्टम था। कॉलेज प्रत्येक सेमेस्टर में किसी ना किसी बहाने मुझे कॉलेज से निष्कासित कर देता था। मैं अपनी शर्तों पर अपना निष्कासन निरस्त करवाता था। मेरे निर्णय गलत नहीं थे, सिद्धांत खोखले नहीं थे इसलिए, कभी माफी नहीं मांगी। सिर्फ एक बार मुझे हाईकोर्ट जबलपुर की शरण में जाना पड़ा था। मेरा स्थानांतरण महू कॉलेज कर दिया गया था। विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट में मेरे निष्कासन की पूरी सूची प्रस्तुत कर दी थी। परंतु वह मेरी इस बहस का जवाब नहीं दे पाए कि जब-जब निष्कासन होता था, वह बिना मेरे माफी मांगे निरस्त कैसे हो जाता था ? माननीय हाईकोर्ट ने मेरा स्थानांतरण निरस्त कर दिया। इस समूचे संघर्ष में मेरी पढ़ाई निरंतर प्रभावित होती रही। परंतु उसके बावजूद मैं हर बार अच्छे नंबरों से पास होता रहा।

दोस्तों, मैं नकल का सक्त विरोधी था। मैं कॉलेज में स्ट्राइक नहीं करवाता था। दूसरे कॉलेजों में जब मीटिंग लेने जाता था। तब भी मीटिंग के बाद छात्रों को वापस क्लास में जाने का आग्रह करता था। इन्हीं बात ने मुझे दूसरे छात्र नेताओं से अलग एक सिद्धांतवादी और सच्चे छात्र नेता की पहचान दिलाई।

गुरु और शिष्य की मुलाकात

1974 और 1975 राजनीति में उथल-पुथल के दिन थे। शरद यादव छात्र नेता से सांसद बन गए थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण नौजवानों के दिलों में बस चुके थे। लोकनायक का एक कार्यक्रम जबलपुर को मिला। जबलपुर के उस कार्यक्रम में मेरे सुझाव पर नौजवानों की एक सभा शहीद स्मारक में अलग से आयोजित की गई। उस सभा से मुझे कृषि विश्वविद्यालय से ऊपर उठकर नौजवानों के नेता के रूप में पहचान मिली। इसी समय जनसंघ के संगठन मंत्री श्री मेघराज जैन मुझसे आकर मिले और बस वहीं से उनका मार्गदर्शन मुझे मिलना प्रारंभ हो गया। वह गुरु और मैं शिष्य बन गया।

इमरजेंसी का काल

एक माह पश्चात 26 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा दिया। मुझे 25 जून की रात को ही गिरफ्तार कर लिया गया और 26 जून की सुबह जबलपुर जेल पंहुचा दिया गया। इसके आगे की कहानी मैं आपको मीसाबंदी वाली कहानी में बता चुका हूँ इसलिए उसे नहीं दोहराह रहा हूं। जेल में जनसंघ के नेताओं से मेरा परिचय हुआ। टीकमगढ़ जेल में माननीय बाबूराव परांजपेय और माननीय निर्मलचंद जैन जैसे नेताओं का सानिध्य, आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिला।

और मैं जनसंघ एवं भाजपा से जुड़ गया।

यह लेख अजय विश्नोई ने अपनी फ़ेस्बुक वाल पर पोस्ट की हैं। जिसमें उन्होंने अपने जीवन की कहानी बताई हैं।

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