मासूम बच्चो से कराई जाती थी दिन-रात मेहनत.
मासूम बच्चो से कराई जाती थी दिन-रात मेहनत.
- एक पेटिस खिलाकर करवाते थे दिन रात काम.
- नींद ना आये इसलिए खिलाते थे दवाई.
भोपाल/निकिता सिंह जबलपुर से भोपाल भागकर आया एक 12 साल का बच्चा रेल्वे स्टेशन पर मिला रेल्वे चाइल्डलाइन ने पूछताछ के बाद बच्चे को शेल्टर होम में रखा है। बुधवार को उसे समिति के सामने पेश किया गया। जिसमें बच्चे से पूछा तो उसने बताया कि मुझसे दिन रात काम करवाया जाता था। जबलपुर की फैक्ट्री में गरीब बच्चो से दिन रात काम करवाया जाता था। और खाने के लिए सिर्फ एक पेटिस मिलती थी उसने बताया कि एक मे ही नही मेरे जैसे कई बच्चो को राजेंद्र भैया उर्फ रंगी यहा लाते थे। और कारखाने में काम करवाते थे.
- नींद ना आये इस कारण खिलते थे गोली
बच्चों ने बताया कि जब भी रात में शिफ्ट बदलती थी तो बच्चों को सुपरवाइजर द्वारा कभी एक कभी दो नशे की गोली खिलाई जाती थी. रोजाना खाने में सिर्फ एक ही पेटिस खिलाई जाती थी. ओर वो भी रात में 2:00 बजे. बच्चों का कहना है कि मालिक उन्हें कभी भी पूरा वेतन नहीं देते थे. ओर कैदी बनाके रखते थे। फेक्ट्री से बाहर भी नहीं जाने देते थे. एक ही कमरे में करीबन 7 से 8 बच्चों को रखा जाता था. टोटल यहां पर पांच कमरे थे. जब भी किसी भी सामान की जरूरत होती थी. तो सुरक्षा गार्ड को पैसे देना पड़ता था.हमें दिन रात कमरों में बंद कर दिया जाता था. और ताला लगा दिया जाता था. और जब भी माता-पिता से बात करनी होती थी. तो मालिक अपने सामने बात करवाते थे ।
- जबलपुर की फैक्ट्री से 17 बचो को लाया गया.
- आपको बता दें कि जबलपुर के तेलहरी क्षेत्र में स्थित ओवन क्लासिक बेकरी के कारखानों से 17 नाबालिग बच्चों को भोपाल लाया गया. समिति के निर्देश पर बाल श्रम विभाग पुलिस विभाग की टीम ने रेस्क्यू किया है. सूत्रों के अनुसार बच्चों को गोकुलपुर स्थित बाल आश्रम गृह में रखा गया है.
- 17 बच्चों में से एक बच्चे के परिजन लेते थे एडवांस.
एक बचे के परिजन एडवांस पैसे लेते थे. कटनी जिले में रहने वाला 17 वर्षीय बालक ने बताया कि उसके माता पिता के द्वारा ही उसे नौकरी पर लगाया गया था. बच्चे ने बताया कि उसके पिता कारखाने में उसे छोड़ने आते थे. और उसका पूरा एडवांस रुपए लेकर जाते थे.
17 बच्चों में से यदि कोई एक भी बच्चा अगर घर लौटना चाहता है. तो उसके बदले में उसके घर कें दूसरे बच्चों को काम पर लगाना पड़ता था और अगर किसी ने यह काम करने से मना किया तो उसका वेतन काट लिया जाता था. छोटी से छोटी गलतियां जैसा पैकेट उल्टे हो जाते थे. या बिस्किट टूट टूट जाते थे. ऐसी गलतियों में भी मालिक वेतन काट लेते थे.
जबलपुर से आया बच्चे के पास मात्र 3000 रुपए थे. इसमें से वह टुकड़ों में टिकट करके भोपाल आया. समिति ने बच्चे को टिकट पर खर्च हुये 800 रुपय लौटा दिए. चौबे का कहना है कि बच्चे के परिवार की स्थिति काफी खराब है. और उन्होंने स्थानीय प्रशासन को लिखते हुए कहा कि उनके परिवार को सरकारी योजना का लाभ दिया जाए.
बालक ने बताया कि मेरे पिता की मौत के बाद मेरे घर में मेरी मां और तीन बहने हम मिलकर काम करने की सोचने लगे. उसने बताया कि 2 दिन हम बिना खाना खाए सो जाया करते थे. यह बातें उसने गांव के रंजीत अंकल से कहीं। तब वह अंकल ने उसे जबलपुर चलने को कहा. वहां फैक्ट्री में मेरे क्षेत्र के कई बच्चे और थे. उन सब को रंजीत अंकल ने ही काम दिलाया था. 2 महीने पहले वह बच्चा इस फैक्ट्री में काम करने आया था. उसके काम करने का समय शाम 6:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक हुआ करता था. अगर उस समय उसे नींद आए तो वहां के मैनेजर उसे गोलियां दिया करते थे. वहां पर एक ही कमरे में हम सब 8 बच्चे रहते थे. जब भी कोई बच्चा नौकरी छोड़कर जाने की मांग करता था. तो उसी के घर के दूसरे बच्चों को काम पर रख लिया जाता था. मुझे अपने घर जाना था. मेरी मां ने भी फैक्ट्री मालिक और रंजीत अंकल से बात की पर वह हमेशा डालते रहते थे. कुछ दिन पहले मुझे काम पर ही नींद आ गई थी. तो मुझे बहुत मारा गया था. इसके बाद में रोज मौका देखता था. और जिस दिन मुझे मौका मिला मैं भाग आया.