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भोपाल: शहडोल जिला अस्पताल में 13 मासूम बच्चों के मौत का जिम्मेदार कौन ? शहडोल जिला चिकित्सालय बना मृत्यु केन्द्र, 8 माह में 362 मासूम काल के गाल में समाए, सो रही मध्यप्रदेश सरकार ?? जांच रिपोर्ट से विभाग भी संतुष्ट नहीं ! मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का बयान-बच्चों को बचाने के पूरे प्रयास किए गए, इलाज में नहीं बरती गई लापरवाही ?

भोपाल: शहडोल जिला अस्पताल में 13 मासूम बच्चों के मौत का जिम्मेदार कौन ? शहडोल जिला चिकित्सालय बना मृत्यु केन्द्र, 8 माह में 362 मासूम काल के गाल में समाए, सो रही मध्यप्रदेश सरकार ?? जांच रिपोर्ट से विभाग भी संतुष्ट नहीं ! मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का बयान-बच्चों को बचाने के पूरे प्रयास किए गए, इलाज में नहीं बरती गई लापरवाही ?
87 लाख मासिक बजट, 1100 आशा कार्यकर्ता, चुस्त मैदानी अमला, फिर कैसे गई 8 माह में 362 मासूमों की जान ?
भोपाल, शहडोल/राजकमल पांडे।
जिला अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। 27 नवम्बर से लगातार नौ बच्चों की मौत के मामले में जांच चल रही थी कि 3 दिसम्बर और 4 दिसम्बर को फिर 4 बच्चों ने जिला चिकित्सालय में दम तोड दिया। जिससे मासूम बच्चों के मौत का आंकड़ा 9 से 13 हो गया है. और अब भी जांच चल रही है। सूत्रों के अनुसार दो जांच रिपोर्ट भोपाल में प्रेषित की जा चुकी हैं। अपितु जबलपुर मेडिकल काॅलेज के सीनियर डाॅक्टरों की रिपोर्ट संदेह पैदा करती है कि कैसे 13 मासूम बच्चों की मौत पर कोई दोषी नहीं है। और संबंधित विभाग भी जबलपुर मेडिकल काॅलेज के सीनियर डाॅक्टरों की जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं। जिसके चलते अलग से स्वतंत्र आॅडिट कराने जा रहे है. और सम्भवतः शनिवार को शहडोल सहित उमरिया और अनूपपुर कलेक्टरों से भी बैठक रखी है। बडा सवाल यह है कि 8 माह में 362 मासूमों ने जान गंवा दी है और उस पर जांच टीम ने डाॅक्टरो को क्लीन चिट कैसे दे दिया. और जबलपुर के सीनियर डाॅक्टरों की जांच टीम आखिर किसे बचाने का प्रयास कर रही है। और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी यह कैसे कह सकते हैं कि शहडोल अस्पताल में डाॅक्टरों ने बच्चों का इलाज बेहतर किया होगा और बच्चों को बचाने हेतु प्रारंभिक इलाज सही तरीके से किया होगा। प्रभुराम चौधरी के बयान से जाहिर होता है कि अपने स्वास्थ्य महकमें पर धब्बा लगने से बचाना चाहते हैं. फिर भले ही इसके भेंट 13 चढें या फिर 8 माह में 362 मासूम. इससे मंत्री जी को कोई फर्क नहीं पड़ता ? 

डिंडौरी, शहडोल और उमरिया के दो दिन से सात माह तक मासूमों की मौत

  • उमरिया जिले के पाली निवासी राजकुमार कोल के सात माह के बच्चे को 3 दिसम्बर को सुबह भर्ती करवाया था जिसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। अचानक शाम को अफरा-तफरी मची और देर शाम को उसकी मौत हो गई। 
  • ऐसी ही कटकोना निवासी मधुरा के करीब ढाई महीने के बच्चे को 4 दिसम्बर के दोपहर जिला चिकित्सालय में भर्ती करवाया था. जहां उसे भी वेंटिलेटर पर रखा गया था. शाम होते होते उस मासूम नहीं भी शहडोल जिला चिकित्सालय के मृत्यु केन्द्र में दम तोड दिया।
  • इसी तरह पोंगरी के अजय की एक माह छह दिन की बच्ची 2 दिसम्बर को भर्ती कराई गई थी. निमोनिया (हाईपोथर्मिया) की वजह से उसके शरीर का तापमान 30 डिग्री था. उस भी बचाया नहीं जा सका। 
  • व साथ ही डिंडौरी से एक दिसंबर को आई ग्यारह दिन की बच्ची की भी मौत हो गई। 
  • एक प्री-मैच्योर डिलीवरी के बाद 30 नवम्बर को भर्ती कराया गया था. जो कि एक दो दिन की थी जिसकी एसएनसीयू में मौत हो गई।

जांच रिपोर्ट से संबंधित विभाग भी संतुष्ट नहीं-छवि भारद्वाज, एमडी, एनएचएम
9 दिन में 13 बच्चों की मौत हो चुकी है. और लापरवाही कहां हो रही है इसके लिए जांच दल का गठन हुआ था. जिस पर जबलपुर मेडिकल काॅलेज के सीनियर डाॅक्टरों की टीम थी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट विभाग को प्रेशित करते हुए शहडोल जिला चिकित्सालय के डाॅॅक्टरों को क्लीन चिट दिया है। लेकिन विभाग इससे संतुष्ट नहीं है। अलग से स्वतंत्र आॅडिट कराने जा रहे हैं। उक्त जांच रिपोर्ट ने भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि आखिर डाॅक्टरों को क्लीन चिट कैसे? किसे बचाने की हो रही कोशिश? इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव भी पूरी घटना की जानकारी ले रहे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन (एनएचएम) मध्यप्रदेश की प्रबंध संचालक छवि भारद्वाज ने आॅन लाइन मीटिंग की. जिसमें स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के साथ उप संचालक स्वास्थ्य (रीवा) भी शामिल हुए शासन स्तर पर हुए रिव्यू में रीवाके डिप्टी डायरेक्टर की अगुवाई में जांच करने आई स्वास्थ्य महकमे की संभागीय टीम ने भी 4 दिसम्बर को अपनी रिपोर्ट षासन को सौपी है। व इसके पूर्व जबलपुर मेडिकल काॅलेज में पीडियाट्रिषियन विभाग के एचओडी डाॅ. पवन घनघोरिया की टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को भेजी है।
उक्त मासूम बच्चों की गई जान पर सबसे बडा सवाल यह है कि शहडोल जिले में स्वास्थ्य विभाग के पास 1100 आशा कार्यकर्ता मौजूद हैं, 87 लाख का मासिक बजट है, जांच रिपोर्ट के मुताबिक चुस्त मैदानी अमला है साथ ही 260 एएनएम भी हैं। और उस पर आशा कार्यकर्ताओं डेढ माह तक नवजातों को देख-रेख हेतु शासन 250 रु. प्रतिदिन दे भी रहा है। इस पर शासन के 87 लाख रु. हर महीने खर्च भी हो रहे हैं। और मासूमों की मौत का सिलसिला है, जो थमने का नाम नही ले रहा है। 8 माह में 362 बच्चों की मौत की वजह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। शहडोल जिला चिकित्सालय के सीएमएचओ यह कहके पल्ला झाड रहे हैं कि हमने बचाने का पूरा प्रयास किया, हमने रैफर के लिए परिजनों को कहा पर परिजन लेने जाने मना कर दिए। सीएमएचओं के ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान से जाहिर है कि मध्यप्रदेश सरकार के स्वास्थ्य के नाम पर उड रहे करोडो-अरबों रूपए विभाग में कुर्सी तोडने हेतु हैं। आईए जानते हैं अब तक किस माह में कितने मासूमों ने गवाई जान।
एसएनसीयू: अप्रैल से नवम्बर तक की स्थिति

  • माह-भर्ती-मौत
  • अप्रैल-149-30
  • मई-185-31
  • जून-183-34
  • जुलाई-239-39
  • अगस्त-181-30
  • सितंबर-210-43
  • अक्टूबर-180-31
  • नवंबर-189-24

अब तक कुल अप्रैल से लेकर नवम्बर तक 1516 एसएनसीयू में भर्ती किए गए, जिसमें 262 की जान बचाई न जा सकी। यही हाल पीआईसीयू को है जहां अप्रैल से अक्टूबर तक 573 भर्ती किए गए और 98 ने अपनी जान गवाई है। वहीं जिला चिकित्सालय में 3 ने जान गवाई है।
3 से 4 दिसम्बर के बीच हुए 5 बच्चों की मौत का संज्ञान लेते हुए महिला बाल विकास विभाग ने 2 महिला सुपरवाईजर को सस्पेंड कर दिया है। और यह संभवतः सस्पेंड किए जाने के नाम खानापूर्ति है, अभी भी दोषी जांच टीम के हथे नहीं चढ़े हैं और ना ही जांच के ऊपर जांच टीम बैठी है।

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