पूरा देश ग़द्दार घोषित हो चुका है !!
साढ़े आठ फ़ीसदी आदिवासी ग़द्दार हैं/ नक्सलियों के साथ हैं,ज़मीन सौंपने और जंगल कटवाने के ख़िलाफ़ रहते हैं! शेड्यूल कास्ट के साढ़े सोलह फ़ीसदी लोग इसलिए ग़द्दार हैं क्योंकि वे नौकरियों में आरक्षण पाते हैं, बाबा साहब की मूर्तियों को माला चढ़ाते हैं, संविधान की बात करते हैं, वर्ण व्यवस्था को अमानवीय मानते हैं और पेरियार आदि की पुस्तकें पढ़ते हैं ।
पिछड़े कितने हैं, यह सवाल ही पिछड़ गया है, कोई गिनने को तैयार नही, गिन लिया तो घोषित करने को तैयार नहीं। मोटा-मोटा मान लीजिए कि देश की आधी आबादी पिछड़ी जातियों में से है । ये भी कभी कभी कहीं कहीं “मंडल कमीशन” की डफली बजा देते हैं जो ग़द्दार वीपी सिंह की देन है इसलिये भले ही पूरी तरह नहीं पर ये लोग भी संदिग्ध के कोटे में तो हैं ही!
चौदह फ़ीसदी मुसलमान तो “हिंदू राष्ट्र” के लिये ओरिजनल ग़द्दार हैं, ग़द्दारी की हर परिभाषा उन्हीं के कपड़ों बोली और जीवन शैली से जन्म लेती है, उनकी ग़द्दारी एक पोस्ट में कैसे बयान हो सकती है!
इसके बाद लिबरल हैं लेफ्टी हैं अंग्रेज़ी दां हैं डिज़ायनर झोलेवाले हैं एनजीओ वाले हैं रिटायर्ड अफ़सर हैं दलाल इतिहासकार हैं एजेंडा पत्रकार हैं टुकड़खोर पत्रकार/पत्तलकार हैं फ़र्ज़ी साहित्यकार हैं सिनेमा नाटक वाले हैं और तमाम बेनाम हैं जो लिस्ट में छूट गये हैं!
वे औरतें भी ग़द्दार हैं……… जो परकटी हैं रोज़ी रोटी कमाने की कोशिश करती मिलती हैं पर हैं……….!
और जो धरम करम जात पॉत छेत्र भूगोल और बाबा लोगों के भक्त नहीं हैं वे तो हैं ही पश्चिम के एजेंट !
तो बचे कौन और कितने ?
वक़्त आ चुका है कि ग़द्दार लोग देशभक्तों को ठीक से पहचान लें , गिनती बहुत मुश्किल नहीं है!!!
यह बीमारी जो कोरोना वायरस की तरह फैल गई है पहचान होते ही दुरुस्त की जा सकती है ।
चलिये पहचानना शुरू करते हैं!
शीतल पी सिंह की कलम से