MP By-Election : उपचुनाव के लिए दोनों पार्टियों ने चुन लिए हैं उम्मीदवार, एक तरफ कांग्रेस कि वापसी और दूसरी तरफ सिंधिया का वर्चस्व
भोपाल से गौतम कुमार की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक के बाद उपचुनाव होने हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते उपचुनाव लगातार और बार-बार टहल रहे। लेकिन इसके बावजूद दोनों ही पार्टियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। यहां तक कि कुछ दावेदार तो कोरोना का प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं और साथ में ही अपने चुनावी रणनीति भी तैयार कर रहे हैं यानी कि एक पंथ और दो काज कर रहे हैं।
सिंधिया के क्षेत्र कि 16 सीटें
अगर ग्वालियर-चंबल संभाग की बात करें तो वहां 16 सीटें ऐसी हैं जिन पर उपचुनाव होने हैं। यह सारी सीटें सिंधिया गुट के समर्थकों की मानी जाती हैं। हालांकि जौरा विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो वह सीट पहले कांग्रेस के पास थी और पूर्व विधायक बनवारी लाल शर्मा के मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि ग्वालियर-चंबल संभाग के 16 सीटों में से 15 सीटों पर भाजपा उन्हीं 15 विधायकों को टिकट देगी जो पहले कांग्रेस में रहते हुए जीते थे। क्योंकि ऐसा तय माना जा रहा है कि जो पहले जीते थे वह कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के बावजूद श्रीमंत ज्योतिराज सिंधिया की अगुवाई में एक बार फिर जीतेंगे। इनके अलावा वे विधायक भी जिन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थामा है वह भी अपने टिकट को लेकर निश्चित दिखाई दे रहे हैं।
24 में से 16 ग्वालियर-चम्बल संभाग की 5 अकेले मुरैना में
अब यह सिंधिया समर्थकों की रणनीति कहें या अति आत्मविश्वास या तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन जो सबसे आकर्षण करने वाली बात है वह यह है कि जो 24 सीटें खाली हुई हैं उनमें से 16 सीटें ग्वालियर चंबल डिविजन की ही है। और किसी को यह बताने की कतई जरूरत नहीं है कि उस क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया का वर्चस्व हमेशा से रहा है। इनमे मुरैना को सबसे अहम माना जा रहा है। सिंधिया गुट के सबसे ज्यादा विधायक मुरैना जिले से ही है इनमें मुरैना से पूर्व विधायक रघुराम कंसाना (Raghuram Kansana) को भाजपा टिकट देने का मन बना रही है वहीं उनके सामने कांग्रेस का राकेश मवई (Rakesh Mawai) को उतारना लगभग तय मान सकते हैं।
लेकिन जो सबसे कशमकश वाली सीट है वह है जोरा विधानसभा की। यह सीट काफी दिनों से खाली है दिवगंत विधायक के निधन के बाद से यहां उपचुनाव होने थे लेकिन पहले सियासी उठापटक और बाद में कोरोना वायरस के चलते यहां उपचुनाव लगातार टल रहे हैं। यहां से कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही अपने प्रत्याशी ढूंढने में काफी मशक्कत करना पड़ रही है। दोनों ही पार्टियां इस सीट से कोई नया और तगड़ा उम्मीदवार उतारना चाहती हैं। यह सीट कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन के बाद खाली हुई थी।
कांग्रेस उनको टिकट देने के विचार में जिन्हें नकार चुकी थी
कांग्रेस इन जगहों से उन उमीदवारों को टिकट देने का मन बना रही है जिन्हें सिंधिया के पॉवर के कारण पहले टिकट नहीं मिल पाया था। भिंड से कांग्रेस चौधरी राकेश सिंह को टिकट दे सकती है यह टिकट भी फाइनल माना जा रहा है हालांकि इसी जिले की गोहद विधानसभा चुनाव से कांग्रेसी इस बार रामनारायण हिंडोलिया अशोक अर्गल या फिर सेवाराम जाटव को टिकट दे सकती है। वहीं अगर ग्वालियर की बात करें तो यहां 3 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं जिसमें से ग्वालियर विधानसभा सीट से सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले और पूर्व मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर को भाजपा का टिकट देना एकदम तय माना जा रहा है उनके सामने कांग्रेस सुनील शर्मा को मैदान में उतार सकती है। इसके अलावा दूसरे सीटों पर पूर्व विधायक मुन्ना लाल गोयल को भाजपा टिकट दे रही है लेकिन कांग्रेस के पास अभी ऐसा कोई उम्मीदवार सामने नहीं आया है जिसके नाम पर मुहर लगाई जा सके।
जौरा से इनका टिकट पक्का
कांग्रेस के पास ऐसे उम्मीदवार नहीं है जिन्हें पूर्व विधायकों के सामने खड़ा किया जा सके। यानी कांग्रेस के पास उम्मीदवारों की काफी कमी बताई जा रही है। हालांकि जौरा विधानसभा क्षेत्र से किसी विधायक के भतीजे को टिकट दिया जाएगा ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं।बहर हाल कांग्रेस की तरफ से जो नाम चर्चा में है वह युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव एवं प्रदेश की कमलनाथ सरकार में पशुपालन मंत्री रह चुके लाखन सिंह के भतीजे संजय सिंह यादव का। ऐसा तय माना जा रहा है कि इस सीट से वही चुनाव लड़ेंगे। वे अब तक तकरीबन सैकड़ों गाँव के दौरे भी कर चुके हैं।
एक तरफ इस चुनाव जहां कांग्रेस के लिए प्रदेश में दोबारा काबिज होने का सबसे अहम मौका है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के लिए यह प्रदेश में बने रहने का आखिरी मौका होगा। एक तरफ जहां कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने क्षेत्र में अपने वर्चस्व का पता चलेगा तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस उन उम्मीदवारों के सहारे इस चुनाव में उतरेगी जिसे वह पहले नकार चुकी है। अब पलड़ा किसका भारी रहेगा यह तो उपचुनाव के नतीजे ही बताएंगे। लेकिन जिस तरीके से भाजपा ने सभी जिलों के अध्यक्षों को बदला है उस हिसाब से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि यह उपचुनाव जल्द से जल्द करवाने के लिए भाजपा भी प्रयास कर रही है।