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चंदेरी : आज से लगा माँ जागेश्वरी देवी माता के दरबार में मां के भक्तों का तांता,पढ़िए पूरा इतिहास 

चंदेरी : आज से लगा माँ जागेश्वरी देवी माता के दरबार में मां के भक्तों का तांता,पढ़िए पूरा इतिहास 

  • यहाँ माता का जागृत रूप दिखलाई देता है, इस स्थल का नाम जागेश्वरी देवी मन्दिर विख्यात् हुआ।
  • देवी जी के प्रकट होने की अनेक मिलती-जुलती अनुश्रुतियाँ यहाँ प्रचलित हैं
  • जागेश्वरी देवी जी के मन्दिर के नीचे एक सागर ताल है। जो वर्षा ऋतु में पर्वत के ऊपर से आते झरनों की कल-कल आवाज के साथ भर जाता है।
  • इसका निर्माण श्रीमंत सरकार महाराजा माधोराव साहब सिंधिया आलीजाह बहादुर के आदेश से सन् 1884 ई. में निर्मित हुआ था। 

द लोकनीति डेस्क भोपाल 

चंदेरी के कीर्तिदुर्ग की मनोहारी प्राकृतिक सुषमा से भरपूर पहाड़ी के मध्य में एवं नगर के दक्षिण पूर्व में माँ जागेश्वरी देवी का भव्य विशाल मन्दिर निर्मित है। जहाँ प्रतिवर्ष सभी धर्माें के हजारों धर्माबलंबी दर्शनार्थ आते हैं और मां जगत जननी माता को चुनरी चढ़ाते हैं और भंडारे भी कराते रहते हैं यहाँ माता का जागृत रूप दिखलाई देता है, इस कारण दर्शनार्थी अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं। इसी कारण से इस स्थल का नाम जागेश्वरी देवी मन्दिर विख्यात् हुआ।
मंदिर का इतिहास
चन्देरी नगर परवर्ती प्रतिहार वंश के सातवें राजा कीर्तिपाल (कूर्मदेव) के कुष्ठ रोग परमेश्वर तालाब पर क्षय होने की अनुश्रुति को सुना हाेगा। इसी कथा को आगे बढ़ाते हैं कि – ‘‘जब कूर्मदेव ने जल में स्नान किया और उनके शरीर का सम्पूर्ण कुष्ठ रोग क्षय हो गया तो उन्होंने जोर-जोर चिल्लाकर अदृश्य शक्ति रूपी ईश्वर का धन्यवाद प्रस्तुत किया, कि तभी बालिका रूप में एक देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा से कहा कि आप जहाँ राजा शिशुपाल ने यज्ञ कराया था उस स्थल पर एक मन्दिर का निर्माण कराये और उस मन्दिर के निर्माण के पश्चात् मन्दिर की शुद्धि कर मेरा आह्वान कर नौ दिवस के लिए मन्दिर के द्वार बन्द कर दें, मैं वहाँ अपने स्वरूप में स्वतः प्रकट हो जाऊँगी। लेकिन जिज्ञासावश मन्दिर जी के द्वार तीन दिन बाद ही खोल दिये। इसकारण यहाँ पर पर्वत में देवी जी का मात्र मुख ही प्रकट हो पाया। शेष शरीर प्रकट नहीं हो सका।
देवी जी के प्रकट होने की अनेक मिलती-जुलती अनुश्रुतियाँ यहाँ प्रचलित हैं। जिनमें से एक और अनुश्रुति इस प्रकार है कि कीर्तिपाल ने चन्देरी को स्थापित कर चन्देरी को ही अपना निवास स्थान बना लिया था। उनकी रानी देवीजी (माता) की अनन्य भक्त थीं। एक दिन स्वप्न में देवी जी ने रानी दर्शन दिये और कहा कि हम तुम्हारी श्रृद्धा-भक्ति से प्रसन्न हैं और हम यहाँ प्रकट होना चाहते हैं। तुम नवरात्रि के पूर्व राजा शिशुपाल के यज्ञ स्थल पर एक मन्दिर का निर्माण कराओ और नवरात्रि में नौ दिन मन्दिर के द्वार बन्द कर देना तो मैं वहाँ प्रकट हो जाऊँगी। उसी प्रकार मन्दिर के द्वार तीन दिन ही खोल दिये और देवी का मुख भाग ही दिखाई दिया।

देवी जी के दर्शन के साथ अन्य दर्शन-
इस प्रकार चन्देरी के संस्थापक कीर्तिपाल के समय के अनुसार यह मन्दिर लगभग 11वीं सदी ई. का निर्मित है। इस मन्दिर में माँ जागेश्वरी देवी जी के मन्दिर के दायें ओर शिव परिवार तथा बाँयीं ओर गुरू दत्तात्रय जी का मन्दिर निर्मित है। मन्दिर जी के परिसर में दो विशाल हजारिया शिवलिंग, श्री वटुक वैरभ जी तथा अनेक लघुरूप में शिवलिंग परिवार विराजमान हैं। पर्वत में श्री गणेश जी एवं श्री हनुमान की प्रतिमाओं के साथ क्षेत्रपाल जी महाराज भी उत्कीर्ण हैं। जिनके दर्शन कर दर्शनार्थी धर्मलाभ अर्जित करते हैं।
इस स्थल का अवलोकन करने वर यह ज्ञात होता है कि देवी जी के मन्दिर के निर्माण के उपरांत बुन्देला राजाओं के समय इस मन्दिर का विस्तार हुआ है। इस स्थल पर विराजमान श्री गणेश जी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण संवत् 1717 कार्तिक सुदी 11 (सन् 1660 ई.) के नागरी लिपि के अनुसार किसी धार्मिक महिला द्वारा यहाँ श्री गणेश जी एवं श्री वैरव देवजी की प्रतिमा उत्कीर्ण कराई थीं।
इसी प्रकार इस स्थल से श्री हनुमान जी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण संवत् 1741 भद्रपद वदी 15 (सन् 1684 ई.) के लेख के अनुसार चन्देरी के धार्मिक अनुयायियों द्वारा दान राशि एकत्र कर इस मूर्ति का निर्माण कराया गया था। इसी प्रतिमा के समीप पर्वत पर एक और अस्पष्ट शिलालेख उत्कीर्ण है जो संवत् 1743 का है।
यह स्थल मन को प्रफुल्लित करने वाला प्राकृतिक स्थल है। यहाँ पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ों से जल झरता रहता है। जो एक लघु कुण्ड़ में एकत्र होता है। जिसका जल अत्यन्त मीठा व स्वादिष्ट अनुभव होता है। मन्दिर परिसर में तीन विशाल कुण्ड़ भी निर्मित हैं।
स्वर्ग सीढ़ी
इस मन्दिर परिसर के नीचे जाने पर भी कुण्ड़ बनाये गये हैं। नीचे के कुण्ड़ के समीप दालान में एक स्वर्ग सीढ़ी निर्मित है। इस स्वर्ग सीढ़ी का निर्माण पत्थर पर अंगूठे के निशान उकेर कर किया गया है। ऐसी अनुश्रुति है कि इस सीढ़ी पर जो भी अंगूठों को रख कर ऊपर तक चढ़ जायेगा तो वह स्वर्ग पहुँच जावेगा। यह धार्मिक श्रृद्धा कहें या इस स्थल पर आने के पश्चात् एक मनोरंजन का साधन, सभी के अपने-अपने भाव हैं।
सागर ताल
जागेश्वरी देवी जी के मन्दिर के नीचे एक सागर ताल है। जो वर्षा ऋतु में पर्वत के ऊपर से आते झरनों की कल-कल आवाज के साथ भर जाता है। इस ऋतु में इस मन भावक स्थल का सौन्दर्य चार गुना बढ़ जाता है। इस सागर ताल के द्वार पर तीन भाषाओं का एक शिलापट्ट अंकित है। जिसके अनुसार इसका निर्माण श्रीमंत सरकार महाराजा माधोराव साहब सिंधिया आलीजाह बहादुर के आदेश से सन् 1884 ई. में निर्मित हुआ था। इस ताल के दरवाजे के समीप ही राधाकृष्ण जी का एक मन्दिर निर्मित है,
वहीं दूसरी ओर अब माता के कई भक्त करोना जैसी महामारी के वजह से दर्शन नहीं कर पाएंगे हालांकि प्रशासन द्वारा गाइडलाइन जारी कर मंदिर में 200 लोग से अधिक एकत्रित होने को लेकर अनुमति प्रदान की गई है जिसमें सोशल डिस्टेंशन मार्क्स सनराइज आदि उपयोग करने के निर्देश दिए गए हैं लेकिन देखना अब यह होता है कि माता के भक्त इस कोरोना महामारी में भी माता के दरबार में मत्था टेकेंगे

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