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बजट 2020: इस बजट में ये 5 चीजें तय करेंगी देश की अर्थव्यवस्था की दिशा

 

वित मंत्री निर्मला सीतारमण शनिवार को अपना दूसरा बजट पेश करेंगी। इस बजट में उनसे से काफी उम्मीदें हैं। यह बजट ऐसे वक्त आ रहा है, जब अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है। यहां हम बजट की ऐसी छह चीजें बता रहे हैं, जो अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेंगी-

1. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
इस बजट में राजकोषीय घाटे को लेकर मोदी सरकार की योजना पर सबकी निगाहें होंगी। कारोबार और अर्थव्यवस्था में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह बहुत अहम है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के तय लक्ष्य से ज्यादा रहेगा। इसकी वजह यह है कि टैक्स संग्रह अनुमान से कम रहेगा।  

2. स्टैगफ्लेशन
 यह अर्थव्यवस्था की वह अवस्था है, जिसमें आर्थिक वृद्धि दर घट जाती है और बेरोजगारी के साथ महंगाई ऊंचे लेवल पर रहती है। अभी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है, लंबे समय तक नीचे रहने के बाद मुद्रास्फीति की दर काफी बढ़ गई है। दिसंबर में खुदरा मूल्य आधारित मुद्रास्फीति की दर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई। यह भारतीय रिजर्व बैंक के तय लक्ष्य से ज्यादा है।  

3. एलटीसीजी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (एलटीसीजी) टैक्स हटाने का ऐलान कर सकती हैं। इससे शेयर बाजार में तेजी देखने को मिलेगी। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 में इसका ऐलान किया था। 14 साल के बाद एलटीसीजी टैक्स को फिर से लागू किया गया था। अभी शेयरों में निवेश से एक साल में हुए 1 लाख रुपये से ज्यादा मुनाफे फर 10 फीसदी की दर से एलटीसीजी टैक्स लगता है,  हालांकि, मौजूदा स्थिति को देखते हुए इसके हटाए जाने की कम ही उम्मीद है।

4. उधारी (Borrowing)
प्राइवेट कंपनियां बजट से पहले उधार से ज्यादा रकम जुटाने की कोशिश कर रही हैं। इसकी वजह यह है कि उन्हें डर है कि अगर बाद में सरकार बाजार से ज्यादा उधार लेती है तो यील्ड बढ़ जाएगी। इसका मतलब है कि कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। टैक्स संग्रह कम रहने और विनिवेश से काफी कम रकम जुटाए जाने के बीच सरकार पर खर्च बढ़ाने का दबाव है। ऐसे में उसे बाजार से ज्यादा रकम उधार के रूप में जुटानी पड़ सकती है।

5. पर्सनल इनकम टैक्स पिछले साल सितंबर में कॉर्पोरेट टैक्स में कमी के बाद व्यक्तिगत आयकर की दर में कमी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए वित मंत्री के पास आयकर की दरों में कमी करने की गुंजाइश कम ही दिख रही है।

 

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