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भोपाल: गैसकांड की 36 वीं बरसी, सरकार ने पेंशन किया बंद तो गैस पीडिता वृद्ध महिलाएं दाने-दाने को हो रही मोहताज ?

भोपाल: गैसकांड की 36 वीं बरसी, सरकार ने पेंशन किया बंद तो गैस पीडिता वृद्ध महिलाएं दाने-दाने को हो रही मोहताज ?
भोपाल/राजकमल पांडे।
भोपाल गैस त्रासदी यह मंजर जब भी जेहन आते हैं, तो जिन्दगी के अब तक सबसे बड़े हादसों में से गुजर कर आते है। भोपाल गैस त्रासदी को 36 बरस बीत गए लेकिन उस रात की त्रासदी आज भी जेहन में लोगों के ताजा है। 2-3 दिसम्बर 1984 की वह त्रासदी वाली रात जब यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने मे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इस दर्दनाक रात को याद कर आज भी उस त्रासदी से झुलसे लोग सहम उठते हैं, रोने और बिलखने लगते हैं। इस हादसे में दो सप्ताह के भीतर 8000 लोगों की जान चली गई थी. उस त्रासदी की हजारों तस्वीर सोषल साइड में आपको उपलब्ध हो जाएंगी. अपितु त्रासदी के रात का एक भी फुटेज अब तक नहीं मिल पाया है. इस त्रासदी से आहत परिवारों आज भी सरकार के भरोसे ही जीता है. अपितु सरकार त्रासदी से पीडित, पीडिताओं की खबर लेने से भी गुरेज करती है। उन वृद्ध महिलाओं की अगर आप व्यथा जान लें तो पांव तले जमीन खिसक जाए। प्रदेष सरकार ने बजट के नाम पर पहले अप्रैल 2016 में पेंशन बंद किया जिसे आंदोलन के बाद दिसंबर 2017 में शुरू किया गया था। और अब दिसंबर 2019 में पेंषन पुनः बंद कर एक-एक रूपए को मोहताज कर दिया है।
कलाबाई उम्र 90 वर्ष
गैस त्रासदी के पीडिता परिवार कलाबाई गैस राहत काॅलोनी में सरकार के द्वारा उपलब्ध कराए दो छोटे-छोटे कमरों में गुजर-बसर करती है। जिसमें से एक कमरा रसोई को दे रखा। दूसरे कमरे रहने की व्यवस्था की है. कलाबाई अकेली रहती हैं। दो बेटे हैं जोकि छोला में रहते हैं। वे बताती हैं कि एक साल पहले तक पेंषन मिलती थी उसी से गुजारा होता था अब चूंकि पेंषन बंद है, तो आस, पडोस से मांगकर गुजारा करना पड़ता है।
कस्तूरी बाई उम्र 98 वर्ष
उसी विधवा काॅलोनी में रहने वाली कस्तूरी बाई की भी यही स्थिति जिनके दो बेटे हैं जिसमें से एक बेटा सब्जी का ठेला लगाकर परिवार को पाल रहा है। और कस्तूरी बाई मेहनत, मजूदरी कर गुजारा करती थी। लेकिन अब कस्तूरी 98 वर्ष की हो चुकी हैं हाथ, पैर काम नहीं करते और साल भर से पेंषन भी बंद है भीख मांगना कर गुजारा करती हैं।
ग्यारसी बाई उम्र 95 वर्ष
डसी गैस राहत काॅलोनी में रहने ग्यारसी बाई भी है जिसें अपने जरूरतों के लिए यहां वहां भटकना पड़ता है। ग्यारसी बाई के दो बेटे हैं जो सुबह षाम दो-तीन रोटियां दे जाते हैं। पेंषन मिलता था तो आराम से ग्यारसी अपना गुजर बसर करती थी।
आपको बता दें कि यह अभी कुछ मामले जो प्रकाश में आएं हैं जिन्हें पेंशन नहीं मिल रहा है और अपने जरूरतों के लिए कहीं भीख मांग रहे है तो कहीं आस पडोस पर निर्भर हैं, तो कहीं खाने के लाले पड़े हैं। ऐसे में सरकार ने पेंशन बंद कर उन गैस त्रासदी से पीडिताओं पर जुल्म से कम नहीं कर रही है।
 

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