इधर-उधर कब तक भटकते रहेंगे महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान, कब होगा न्याय
इधर-उधर कब तक भटकते रहेंगे महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान, कब होगा न्याय
' वर्षो से महाविद्यालयों में कार्य करने के बाद भी रोजगार छीन लिया गया, भविष्य भी अनिश्चित है '
भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव:-
उच्च शिक्षित अतिथि विद्वानों के द्वारा वर्षो से प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में कालखण्ड दर और प्रति कार्य दिवस पर सेवा देने के बाद भी इनके पदों पर लोक सेवा आयोग से परीक्षा करवाकर चयनितो को दिसंबर 2019 नियुक्ति दे दी गई थी। जिससे बेरोजगार हुए अतिथि विद्वानों में 600 के लगभग अभी भी व्यवस्था में आने के लिए तरस रहे हैं। फिलहाल चल रही हर सप्ताह की भर्ती में सभी विषयों सहित 5 से 10 पद च्वाईस फिलिंग में दिए जा रहे हैं, वे भी ऐसे काॅलेजो के लिए है जहां पर नियमित फैकल्टी जाने से कतराती है। इनके नियमितीकरण के लिए पूर्व कमलनाथ सरकार ने वचन दिया था, लेकिन सत्ता खोने तक कुछ नहीं किया था। वहीं इनके आंदोलन के दौरान अतिथि विद्वान द्वारा आत्महत्या करने और कई सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनो द्वारा इनका समर्थन करने के कारण वर्तमान बीजेपी सरकार ने भी उस समय विपक्ष में रहकर सड़क से लेकर सदन तक पक्ष लिया था। लेकिन अब 11 माह बीत गए हैं, फिर भी इनका भविष्य अनिश्चित है। इस तरह यह उच्च शिक्षित इधर से उधर भटकते फिर रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017 में अब तक हुए 32 संशोधन और कोर्ट में लंबित कई मामलों के बाद भी नियुक्ति प्रक्रिया जारी है, जो असंवैधानिक है। इस भर्ती में फर्जी दस्तावेज लगाने वाले, दो से अधिक संतान वाले, एक ही समय में अन्यत्र विश्वविद्यालय अथवा संस्थान से नियमित रूप से डिग्री लेने और अतिथि विद्वान के रूप में कार्य करने वाले आदि की भी नियुक्ति की गई है। परंतु रसूखदारो के दबाव से इनकी जांच तक नहीं की गई है।
वहीं 17 दिसंबर 2019 के अतिथि विद्वानों के नियमानुसार केवल वे ही अभ्यर्थी फाॅलेन आउट की भर्ती में भाग ले सकते हैं, जो 1 जुलाई 2019 से फाॅलेन आउट है और नियमित भर्ती की नियुक्ति से प्रभावित हुए हैं। लेकिन इसमें भी कई अभ्यर्थियों ने इससे पूर्व और बाद के होकर जिनके पास अनुभव तक शून्य होने के बाद भी अतिथि विद्वान के पद पर नियुक्ति पा ली है। एक तरफ नियमित भर्ती में उच्च शिक्षा विभाग ने कोर्ट के आदेशों को अमान्य कर दिया था, वहीं अतिथि विद्वान की भर्ती में मान्य करके दोहरा रूप अपनाया है।
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी का इस बारे में कहना है कि , ” सरकार की शोषणकारी नीति के कारण अतिथि विद्वानों ने वर्षों तक अल्प मानदेय में काम किया, उसके बाद रोजगार छीनकर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया है। दिनोदिन उच्च शिक्षित उम्रदराज हो रहे हैं। आखिर नियमितीकरण के लिए इतना विलंब क्यों किया जा रहा है।