लॉक डाउन मार रहा है : मोबाईल बेचकर परिवार का पेट भरा और फिर लगा ली फांसी
Bhopal Desk
हरियाणा के औद्योगिक इलाक़े गुड़गांव के सेक्टर 53 में एक मज़दूर ने आत्महत्या कर ली। छह लोगों के परिवार की अकेले ज़िम्मेदारी निभाने वाले मज़दूर ने निराशा में ये क़दम उठाया। मृतक मुकेश के चार छोटे बच्चे हैं और उनकी पत्नी, सास और विकलांग ससुर हैं। मुकेश के ससुर ने बताया, “जबसे लॉकडाउन हुआ तबसे हालत बहुत ख़राब हो गई। हालांकि उससे पहले से ही हालत बुरी थी क्योंकि काम धाम कुछ चल नहीं रहा था, मेरा दामाद बच्चों को बचाने के लिए 12 हज़ार रुपये का मोबाइल बेच दिया। उससे मिले पैसे वो एक पंखा और दो चार किलो आटा लेकर आया और फिर घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।”
उन्होंने बताया कि उस समय वो मंदिर पर खाना लेने चले गए थे। वो कहते हैं, “इससे बढ़कर मैं क्या कहूं कि खाना पीना भी हम लोगों का हराम है। मिलता ही नहीं तो खाएंगे कहां से। मुकेश की पत्नी के दो भाई भी इसी झुग्गी में रहते हैं और कंस्ट्रक्शन साइट पर पेंट और पुट्टी का काम करते हैं। मुकेश भी इन्हीं के साथ पीओपी और पुट्टी का काम करते थे और अचानक हुए लॉकडाउऩ के बाद उन्हें ठेकेदार से बकाया पैसा भी नहीं मिला, जिसकी वजह से घर की हालत बहुत तंग हो गई थी। मुकेश के ससुर ने बताया कि जब पुलिस को पता चला तो वो आनन फानन में लाश के अंतिम संस्कार का दबाव डाला। लेकिन इसके बावजूद इस परिवार को ख़बर लिखे जाने तक कोई सरकारी मदद नहीं पहुंची।
रुआंसी मुकेश पत्नी ने बताया कि ‘खाने पीने की बहुत दिक्कत थी इसीलिए उन्होंने अपना मोबाइल बेच कर राशन लाए और फिर अचानक फांसी लगा लिए।’ वर्कर्स यूनिटी की ग्राउंड रिपोर्ट में लोग इस बात को लगातार कह रहे हैं कि सभी प्रवासी मज़दूरों को तत्काल मुफ़्त राशन मुहैया कराया जाए और उनके खाते में सरकार कुछ पैसे जमा कराए। केरल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और झारखंड की सरकारों ने इस बारे में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन केंद्र सरकार की ओर से अभी तक कोई साफ़़ बात निकल कर नहीं आई है।
कितना लाचार होगा वह शख्स जिसने अपने परिवार अपने बच्चों को छोड़कर फांसी लगा ली। क्या बीत रही होगी उससे जब उसने अपने आप को लटकाया होगा। क्या-क्या सोचा होगा मारने से पहले ? अब तक केंद्र सरकार ने मजदूरों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं है। कोरोना तो जब मारेगा तब मारेगा भूंख पहले मर देगी। अनुरोध है ऐसे लोगों से हताश निराश न हों। जहां से मुमकिन हो जीने कि राह चुनिए क्यूंकि मरना सिर्फ अंत और बुरा अंत है।
अब केंद्र सरकार को सोचना होगा कि इन मजदूरों को या तो वापस पहुचवाया जाए या फिर इन तक साड़ी सुविधाएं पहुँचाया जाए।