सभी खबरें

विजय दिवस : 49 सालों की कहानी, कभी न भूलने वाली कहानी !

विजय दिवस : 49 सालों की कहानी, कभी न भूलने वाली कहानी !

16 दिसंबर की तारीख भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के इतिहास में भी खासी अहमियत रखती है. 49 साल पहले 1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान को ना केवल धूल चटाई, बल्कि पड़ोसी मुल्क के दो टुकड़े भी हो गए. जिसके बाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया। उस जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने सरेंडर किया था। लेकिन भारत के 54 फौजियों के बारे में आज तक पता नहीं लग सका।

‘‘मैं पाकिस्तान की जेल में हूं’’

मेजर कंवलजीत सिंह यह नाम सुनते ही देश का सीना चौड़ा हो जाता है. यह इकलौते ऐसे अफसर थे, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान की जंग एक हाथ से लड़ी। कहा जाता है कि अगर कंवलजीत न होते तो आज पंजाब का फिरोजपुर पाकिस्तान में होता। उनकी पत्नी जसबीर कौर और इकलौती बेटी आज भी उनकी राह तक रही हैं। 71 की लड़ाई के 12 साल बाद उन्हें गुरुमुखी में लिखा हुआ पत्र मिला था, जिसमें कंवलजीत ने पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बंद होने के साथ ही अपने साथ हुए जुल्म को भी बयान किया था। पत्नी कहती हैं- 'ना..! मेजर कंवलजीत सिंह 'थे' मत बोलिए। वो हैं। जिंदा हैं।'

पाकिस्तान ने 93 हजार सैनिक तो छोड़ पर

1971 की जंग के बाद हुए शिमला समझौते में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को वापस भेजा गया। हालांकि सरकार ने भारत के 54 लापता सैनिकों को लेकर कोई समझौता नहीं किया। 1979 में संसद में अमर सिंह पठावा के सवाल के जवाब में विदेश मंत्री समरेंद्र कुंडू ने लोकसभा में लिस्ट जारी की, जिसमें 40 लापता सैनिकों के नाम थे। इसमें उन जेलों के बारे में भी बताया गया था, जहां इन सैनिकों को रखा गया। बाद में इस लिस्ट में 14 नाम और भी जुड़ गए।

1971 ‘मिसिंग 54’ जांबाज

1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग के बाद 54 सैनिकों और अधिकारियों को (लापता) या फिर (मृत) घोषित किया गया। ऐसा माना जाता है कि ये सैनिक आज भी जिंदा हैं और पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में कैद हैं। इन 54 लापता में 30 आर्मी के और 24 एयर फोर्स के जवान हैं। वेस्टर्न फ्रंट पर लड़ते हुए इन सैनिकों को गिरफ्तार किया गया था।

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक लापता हुए मेजर अशोक सूरी का खत 1974 में खत आया था। उन्होंने परिवार को भेजे खत में जिंदा होने की बात कही थी। सेना उन्हें मृत्य घोषित कर चुकी थी। पर साल 1975 में कराची से आए एक पोस्टकार्ड में 20 भारतीय सैनिकों के जीवित होने की बात लिखी थी। 1980 में विक्टोरिया शॉफील्ड की किताब 'Bhutto- Trial And Execution' में एक ऐसी जेल का जिक्र किया गया, जिसमें भारतीय सैनिक कैद थे।

युद्ध के मैदान में भारत के सामने कभी नहीं टिक पाया पाकिस्तान भी 1989 तक अपनी जेल में इन लापता सैनिकों के होने की बात को खारिज करता रहा। लेकिन बेनजीर भुट्टो ने सत्ता संभालने पर इस बात को स्वीकार किया था। हालांकि इसके बाद फिर से पाकिस्तान ने सैनिकों की बात को सिरे से खारिज ही किया। पत्रकार चंदर एस. डोगरा ने अपनी किताब 'Missing in Action: The Prisoners Who Did Not Come Back' में दावा किया है कि मई 1984 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की मुलाकात के दौरान पाकिस्तान ने लापता सैनिकों के नाम वाले बंदियों के होने की बात को स्वीकार किया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button