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मध्यप्रदेश की पोहा राजनीति 

मध्यप्रदेश/गौतम कुमार  : राजनीति की बिसात में शय और मात किसकी होती है? क्या हमारे नेता कभी हारते हैं? बिल्कुल भी नहीं इस खेल का अंतिम औरआखिरी प्यादा जनता है जनता वह प्यादा जिसकी हर चाल राजा(नेता) पर टिकी हुई है। सौभाग्यवश जनता यहां अपना राजा भी खुद चुनती है और अपने हार का कारण भी खुद बुनती है। अपने फायदे और नुकसान के लिए सरकार गिरा और बना लिया जाता है जो नेता कल तक फलाना पार्टी का सिरमौर था आज वह अपने धुर विरोधी पार्टी का पालनहार है। 
मध्य प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य को पहले समझना होगा क्योंकि बिना इसके इस परीकथा को समझना आसान नहीं होगा। सबसे पहले फलाना पार्टी की बात करें तो। फलाना का सिरमौर ,सिरमौर कहने से खुश नहीं होना चाहता था। सिरमौर को अब वह चाहिए था जिससे वह असली में सिरमौर हो जाए। सिरमौर ने सबसे पहले अपने लिए प्रदेश अध्यक्ष या फिर राज्यसभा के लिए सीट मांगी। मगर फलाना पार्टी के दूसरे और तीसरे सिरमौर ने उसकी एक नहीं सुनी। सिरमौर के मात्र कहने से 22 विधायक जिसमें छह मंत्री शामिल थे। बिना बताए गायब हो गए जैसे पोहा बनाने के लिए चूड़ा, तेल , प्याज और मूंगफली का होना आवश्यक है। ठीक वैसे ही सरकार बनाने के लिए 114 मसाले अब जब 22 मसाले ही गायब हो गए हो तो पोहा मतलब सरकार कैसे बन सकती है? ऐसा तो है नहीं कि एक दुकान के पास मसाला नहीं है तो पूरा प्रदेश पोहा विलीन हो जाए।
 तो इन मसालों को दूसरे दुकानदार ने उचित मान में अपने पोहा में शामिल कर लिया।साथ ही उस सिरमौर को जिसके यह मसाले हैं उसे भी सच्चे रूप में सिरमौर बनाने का फैसला कर लिया। 
दूसरे दुकानदार के पास भी है एक से बढ़कर एक मसाले
 जब आपके पास सब्जी मसाला, चाट मसाला और धनिया हो तब आप शायद इस गफलत में पड़ जाएंगे कि किस मसाले का किस रूप में प्रयोग करें। ऐसी स्थिति में आप सभी मसालों को हल्का -हल्का ही पोहा में डालेंगे। मगर चाट मसाला और सब्जी मसाला अपने वर्चस्व की लड़ाई में पोहा को खराब और अच्छा दोनों ही कर सकता है। अब यह फैसला दुकानदार को लेना है कि क्या वह सब्जी मसाला ज्यादा देगा या फिर चाट मसाला क्योंकि लोग तो उसी के दुकान का खाएंगे !

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