वह 24 घंटे तक बेजान पड़ी रही वंदना तिवारी और कोई उसको देखने तक नहीं आया ,क्या इनके लिए बजवाया था थाली और घंटा ?
Bhopal Desk ,Gautam Kumar
ज्ञात हो कि शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में फार्मासिस्ट के पद पर तैनात वंदना तिवारी की ब्रेन हैमरेज के कारण मौत हो गई है। वे कई दिनों से लगातार कोरोना वायरस के चलते नॉन स्टॉप काम कर रही थी। उनके ब्रेन हैमरेज का मुख्य कारण भी यही हो सकता है। बहरहाल वंदना के पति ने सरकार और मेडिकल विभाग के रवैये पर बड़े सवालिया निशान उठाये हैं। उनका कहना है की सरकार और मेडिकल विभाग के डॉक्टरों ने उनकी सहायता नहीं की जिसके कारण वंदना की मौत हुई है। पढ़िए यह विस्तृत रिपोर्ट।
नॉन स्टॉप कोरोना ड्यूटी के चलते 31 मार्च को डॉक्टर वंदना तिवारी को ब्रेन हेमरेज हुआ था। शर्मनाक बात यह है कि जयारोग्य चिकित्सालय में डॉक्टरों ने उनका इलाज ही नहीं किया था। 24 घंटे तक लावारिस पड़े रहने के बाद उनके पति उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल में ले गए थे। मेडिकल कॉलेज, शिवपुरी कलेक्टर, ग्वालियर कमिश्नर से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक किसी ने वंदना की मदद नहीं की।
ब्रेन हेमरेज के बावजूद ग्वालियर में डॉक्टर देखने तक नहीं आए
शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में फार्मासिस्ट पद पर पदस्थ वंदना तिवारी को कोरोना संक्रमण के खिलाफ काम करने वाली टीम में तैनात किया गया था। जहां 31 मार्च को ऑन ड्यूटी अचानक तबीयत खराब हो गई। वहां से उन्हें जिला चिकित्सालय लाया गया। जहां डॉक्टरो ने वंदना तिवारी को ग्वालियर के जयरोग्य चिकित्सालय में रैफर कर दिया। वहां 24 घंटे तक एक भी डॉक्टर उन्हे देखने तक के लिए नहीं आया। प्राथमिक उपचार तक शुरू नहीं किया गया। डॉ वंदना तिवारी लावारिस पड़ी रही, तड़पती रही।
वंदना के परिजनों ने जयरोग्य के अस्पताल प्रबंधन का यह रवैया देखा तो वंदना तिवारी को ग्वालियर के बिरला हॉस्पिटल में 1 अप्रैल को भर्ती कराया गया। वहां डॉक्टर अभिषेक चौहान ने इलाज शुरू किया एमआरआई कराने के बाद बताया कि वंदना को ब्रेन हेमरेज हुआ है। तत्काल आपरेशन करना होगा। बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टरो ने वंदना के ब्रेन का आपरेशन किया गया, लेकिन वह कोमा में चली गई थी।
वंदना के पति का आरोप है कि आन ड्यूटी उसकी तबीयत खराब हुई थी
डॉ वंदना के विभाग ने उनकी कोई मदद नहीं की। शिवपुरी कलेक्टर ने हाल चाल सब नहीं जाना। शिवपुरी मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. इला गुजरिया सिर्फ मदद करने का आश्वासन देती रही लेकिन कोई मदद नहीं की। ग्वालियर में डॉक्टरों ने इलाज नहीं किया। ग्वालियर कलेक्टर और ग्वालियर कमिश्नर ने कोई मदद नहीं की। इस मामले को भोपाल समाचार ने भी उठाया था। कथित संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। अंततः वंदना तिवारी ने दम तोड़ दिया।
थाली घंटा किनके लिए बजाया था?
अगर एक मेडिकल स्टाफ का मनोबल बढ़ाने के लिए पीएम आव्हान करते हैं तो लोग अपने-अपने घरों से थाली-लोटे पटकने लगते हैं। लेकिन जहाँ इनको असलियत में सरकार की जरूरत होती है वहां सभी नदारद होते हैं। हमारी सुरक्षा के लिए तो ये लोग दिन-रात लड़ रहे हैं। पर इनकी सुरक्षा का क्या ? क्यों एक स्वास्थय कर्मी को सरकारी अस्पताल छोड़कर प्राइवेट में जाना पड़ा ? क्यों उसका बेजान शरीर 24 घंटे तक इलाज़ का इंतज़ार करता रहा ? क्यों हमारे मेडिकल टीम के पास स्वास्थय व्यवस्थाओं की इतनी भारी कमी है ? इन सब से तो यही लगता है की वह ब्रेन हैमरेज से नहीं मरी बल्कि उससे ज्यादा सरकार और मेडिकल विभाग की लापरवाही ने उनकी जान ले ली। यह एक नेचुरल डेथ नहीं है साहब यह हत्या है !