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देश के प्रख्यात पत्रकार, "मध्यप्रदेश" की धरती पर जन्म लिए "माखनलाल चतुर्वेदी" को ही नहीं पहचान पाये "कांग्रेस" के ये विधायक

देश के प्रख्यात पत्रकार, मध्यप्रदेश की धरती पर जन्मे “माखनलाल चतुर्वेदी” को ही नहीं पहचान पाये “कांग्रेस” के विधायक

भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव :- आज प्रख्यात पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती है. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती पर पर इंदौर विधायक संजय शुक्ला ने कवि मैथिली शरण गुप्ता की तस्वीर अपने ग्राफ़िक्स में लगाकर उन्हें शत शत नमन किया.

 संजय शुक्ला इंदौर 1 से कांग्रेस के विधायक है और वो माखनलाल चतुर्वेदी जो मध्यप्रदेश की धरती पर जन्म लिए उन्हें नहीं पहचान पा रहे है…

https://twitter.com/SanjayShuklaINC/status/1378582919459971077?s=19

कौन हैं माखनलाल चतुर्वेदी:-

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की ख्याति एक लेखक,कवि और वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में हैं  लेकिन वो एक स्वतन्त्रता सेनानी भी थे.इसके अलावा उनकी पहचान एक जागरूक और कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार की भी थी. इस वजह से ही उनके नाम पर पत्रकारिता को समर्पित एशिया की पहली यूनिवर्सिटी “माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन” का नाम रखा गया. माखनलाल “पंडितजी” के नाम से भी विख्यात है. माखनलाल चतुर्वेदी को ब्रिटिश राज के दौरान स्वतंत्रता के लिए चलने वाले विभिन्न आंदोलनों में दिए योगदान के कारण भी याद किया जाता हैं. इसके अलावा उनकी रचनाए “पुष्प की अभिलाषा: और  “हीम-तरंगिनी” आज भी उतनी ही प्रसिद्द हैं जितनी उस समय थी, जब इसकी रचना हुई थी. वो भारत के स्वतन्त्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे,लेकिन स्वतन्त्रता के बाद उन्होंने सरकार में कोई पद लेने से मना कर दिया. वो स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी लगातार कई समय तक सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लिखते रहे,और महात्मा गाँधी के दिखाए सत्य अहिंसा और मार्ग पर चलते रहे. उनकी कविताओं में भी देश के प्रति समर्पण और प्रेम को देखा जा सकता हैं.

कौन हैं मैथिली शरण गुप्त:-

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। संभ्रांत वैश्य परिवार में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम 'सेठ रामचरण' और माता का नाम 'श्रीमती काशीबाई' था। पिता रामचरण एक निष्ठावान् प्रसिद्ध राम भक्त थे।इनके पिता 'कनकलता' उप नाम से कविता किया करते थे और राम के विष्णुत्व में अटल आस्था रखते थे। गुप्त जी को कवित्व प्रतिभा और राम भक्ति पैतृक देन में मिली थी। वे बाल्यकाल में ही काव्य रचना करने लगे। पिता ने इनके एक छंद को पढ़कर आशीर्वाद दिया कि “तू आगे चलकर हमसे हज़ार गुनी अच्छी कविता करेगा” और यह आशीर्वाद अक्षरशः सत्य हुआ।मुंशी अजमेरी के साहचर्य ने उनके काव्य-संस्कारों को विकसित किया। उनके व्यक्तित्व में प्राचीन संस्कारों तथा आधुनिक विचारधारा दोनों का समन्वय था। मैथिलीशरण गुप्त जी को साहित्य जगत् में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था।

मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगाँव, झाँसी के राजकीय विद्यालय में हुई। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त गुप्त जी झाँसी के मेकडॉनल हाईस्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए भेजे गए, पर वहाँ इनका मन न लगा और दो वर्ष पश्चात् ही घर पर इनकी शिक्षा का प्रबंध किया। लेकिन पढ़ने की अपेक्षा इन्हें चकई फिराना और पतंग उड़ाना अधिक पसंद था। फिर भी इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। इन्हें 'आल्हा' पढ़ने में भी बहुत आनंद आता था

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