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Narmada Jayanti : कैसे हुई थी माँ नर्मदा की उत्पत्ति ? नर्मदा जयंती विशेष

Bhopal Desk, Gautam :- पुण्य सलिला माँ नर्मदा (Narmada) के उद्गम स्थल अमरकंटक (Amarkantak) में मानव सभ्यता की हर कहानी छिपी हुई है। इतिहास (History) साक्षी है कि हमारे पूर्वजों की तपस्या का यह प्रताप रहा है कि नर्मदा जल के स्पर्श मात्र से मानव के सारे पाप काट जाते हैं। आज नर्मदा जल की जो दुर्दशा हो रही है, उससे मानव के पाप धुलें न धुलें नर्मदा दूषित जरूर हो रही है।
उद्गम स्थल के निकलने से कुछ दूरी में ही लोग जगह-जगह गन्दगी फैला रहे हैं। आज यानी की शनिवार को नर्मदा जयंती है और चहुंओर इसकी धूम है। ऐसे पावन अवसर है हम सबको माँ नर्मदा के जल को सरंक्षित करने का संकल्प लेना होगा।

कैसे हुई थी माँ नर्मदा की उत्पत्ति
वैदिक मान्यताओं सहित पूजन महत्ता के कारण इसे अन्य नदियों के अपेक्षा अधिक पूज्य माना गया है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में अमरकंटक से बहती है। नर्मदा पुराण के अनुसार जब समुन्द्र मंथन में निकले विष को शिव ने ग्रहण किया तो कंठ में अटके विष के असर की व्याकुलता में ब्रह्मांड का चक्कर काट रहे शिव इसी मैकल (Maikal) सतपुड़ा के पहाड़ियों पर ठहरे, जहाँ कंठ के पास से पसीने के रूप में निकला एक बूँद पसीना अमरकंटक में गिरा और इसी बूँद से माता नर्मदा की कन्या रूप में उत्पत्ति हुई।
धुनि पानी अमरकण्टक के गर्म पानी का झरना है। यह झरना औषधीय गुणों से संपन्न है और इसमें स्नान करने से शरीर के असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना उचाई से गिरते समय दूध के समान प्रतीत होता है। यहाँ सोनमुदा(सोन नदी) का उद्गम स्थल है। सोनमुदा नर्मदाकुंड से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर मैकाल पहाड़ियों के किनारे है, सोन नदी झरने के रूप में 100 फ़ीट ऊँची पहाड़ी से गिरती है। 

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