श्रावण सोमवार विशेष:-प्राचीन तपोभूमि और पहाड़ों की तलहटी में बड़केश्वर महादेव के मंदिर से जुड़ी हुई है लोगों की आस्था
श्रावण सोमवार विशेष:-प्राचीन तपोभूमि और पहाड़ों की तलहटी में बड़केश्वर महादेव के मंदिर से जुड़ी हुई है लोगों की आस्था
यहाँ पहुँचते ही साक्षात होता है भगवान बड़केश्वर महादेव के होने का अहसास
प्राचीन,तपोभूमि ओर पहाड़ो की तलहटी में बड़केश्वर महादेव
कुक्षी/मनीष आमले – पवित्र श्रावण मास में शिव भक्तों का शिवालयों में जाकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर दर्शन लाभ का क्रम जारी है ।
क्षेत्र में भी अनेक शिव मंदिर अपने आप में प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त है प्राचीन और पुराने शिव मंदिरों में मालवा निमाड़ क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध है बाग कुक्षी मार्ग से 3 किलोमीटर अंदर महाभारत कालीन बड़केश्वर महादेव का मंदिर है जो पहाड़ों की तलहटी में स्थित है। इस मंदिर की प्राचीनता से अपने आप में मान्यता है यहां मंदिर के गर्भगृह में भगवान भोलेनाथ के दो शिवलिंग हैं और दोनों ही शिवलिंगो ओं की जलधारा पूर्व मुखी है पूर्व मुखी जलधारा के शिवलिंग अपने आप में चमत्कारिक और भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं जो पूरे भारत भर में बहुत ही कममन्दिरों में नजर आएंगे। यहाँ पहुँचते ही भक्तों को साक्षात भगवान शिव के होने का अहसास होने लगता है और वह भोलेनाथ की भक्ति में रम जाता है। यहां पर कई लोग आकर उल्टे स्वस्तिक बनाकर अपनी मनोकामना मांगते हैं ओर पूरी होने पर स्वस्तिक को सीधा करते है।
मंदिर के सामने बहती कल-कल नदी प्राकृतिक सोंदय में चार-चांद लगाती है
मंदिर के सामने कल बहती नदी और हरियाली के बीच स्थित बड़केश्वर महादेव पर महाशिवरात्रि पर भी सबसे बड़ा मालवा निमाड़ का सात दिवसीय मेला लगता है जिसमें लाखों शिवभक्त शामिल होते हैं । श्रावण मास में यहां पूरे 1 माह तक अभिषेक और शाम को महा आरती होती है जिसमें क्षेत्र के भक्त शामिल होते हैं लोग यहां पिकनिक स्पॉट के रूप में भी आकर परिवार मित्रों के साथ श्रावण माह का आनंद लेते हैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां पहाड़ों से 12 माह भीषण गर्मी में भी कल कल जल बहता है जो शुध्द ओर मिनरल वाटर से भी बेहतर होता है । बड़केश्वर महादेव में ही दूधिया महादेव गुफाओं में शिवलिंग और पुराने ऋषि मुनि के तपस्या के अवशेष है यह भी यहां देखा जा सकता है कहा जाता है कि बड़ो के झाड़ पुराने जमाने मे बहुतायत थे और ऋषि मुनि तपस्या करते थे इसीलिए इसका नाम बड़केश्वर महादेव पड़ा है।