किसान आंदोलन: समस्या से बर्बरता तक………………………
किसान आंदोलन: समस्या से बर्बरता तक………………………
द लोकनीति डेस्क:गरिमा श्रीवास्तव
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को 1 साल हो चुके हैं। इस एक साल में गणतंत्र दिवस पर देश हिंसा भी देख चुका है, प्रदर्शन के दौरान किसानों पर लाठीचार्ज भी देख चुका है और तो और नाराज किसानों द्वारा नेताओं मंत्रियों विधायकों की घेराबंदी भी देख चुका है। 26 जनवरी के बाद से किसानों और सरकार के बीच वार्ता आगे नहीं बढ़ पाई है। इस बीच कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी बीत गए और कुछ महीनों के भीतर ही अगले दौर के विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ जाएगी।
किसानों की मांग है कि सरकार बिना शर्त कृषि कानूनों पर वार्ता करें और इन्हें वापस ले तो सरकार की दलील यह है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बजाय किसान आपत्तियों को सामने रखें जिसे सरकार अमल में लाने की कोशिश करेगी। आंदोलन इस कदर उग्र हो गया है कि अब वह दिल्ली की सीमाओं से बढ़ते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आगे लखीमपुर खीरी तक पहुंचने लगा है।
इसी आंदोलन और प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में ऐसी हिंसा हुई कि जिसमें 4 किसानों समेत कुल 8 लोगों की मृत्यु हो गई। देश का पेट भरने वाले अन्नदाता के खिलाफ इस बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का आपत्तिजनक बयान आया जिसमें उन्होंने स्थानीय लोगों से उग्र किसानों के खिलाफ डंडे उठाने को कह दिया। एक तो सरकार और किसानों के बीच वार्ता आगे नहीं बढ़ रही है ऊपर से सत्ता दल के नेताओं की ओर से लगातार ऐसे बयान आ रहे हैं जिससे बातचीत की रही सही संभावनाएं भी मुश्किल दिखाई पड़ने लगी हैं। राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने का ऐलान कर दिया है तो सत्ता में बैठी बीजेपी को लगता है कि किसान आंदोलन राजनीतिक रुप ले रहा है और या आंदोलन अब बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन हो चला है। क्योंकि किसानों के निशाने पर सरकार है तो ऐसे में विपक्ष भी इस आंदोलन के कंधे पर बंदूक रखकर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहा है। आजादी के बाद से देश में इतना लंबा किसान आंदोलन कभी देखने को नहीं मिला। लेकिन इतिहास गवाह है कि इसी राकेश टिकैत के पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों को लेकर संसद भवन के ठीक सामने बोट क्लब पर धरने पर बैठ गए थे। लेकिन अब किसानों को दिल्ली की सीमा के भीतर प्रवेश नहीं करने दिया गया है इसलिए वह सीमाओं पर ही दिल्ली को घेर कर बैठ गए हैं।
पूरे घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट भी बेबस नजर आ रही है क्योंकि दिल्ली की सीमाएं बंद होने से उसके पास परेशान लोगों की याचिकाएं आ रही है तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों को लेकर कमेटी तो बनाई और उसकी रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आ पाई है। किसान कहते हैं कि उनका आंदोलन सरकार से है क्योंकि यह एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार का फैसला था जिसे वापस लेना या ना लेना उसी सरकार के अधिकार क्षेत्र में है ना कि अदालत के।
पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई इलाकों में किसान आंदोलन फैला हुआ है। खासकर गन्ना किसान जो हाल फिलहाल में बीजेपी के बड़े समर्थक वोट बैंक के तौर पर दिखाई पड़े थे उनकी नाराजगी बीजेपी को उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है इसलिए वह भी पशोपेश में है कि आखिर रास्ता कैसे निकालें।
सरकार की ओर से सिर्फ खबरिया बयान आता है कि वह किसानों से बातचीत को तैयार हैं तो किसान नेता पूछ रहे हैं कि कोई तारीख बताइए जगह बताइए और न्योता भेजिए ताकि बातचीत हो सके। अंतर्गत तो यह लगता है कि अब यह किसान संगठनों उनके नेताओं और सरकार के बीच अहम की लड़ाई शुरू हो गई है जिसका अंत नजर नहीं आता।