सभी खबरें

PPP मॉडल : सरकार आपको उतना ही देगी जितने में आपका रोटी-दाल चल सके !

भोपाल डेस्क, गौतम कुमार

कोई भी देश अपने आप बड़ा नहीं होता उसको बड़ा बनाने के लिए कठिन फैसले लिए जाते हैं और यह फैसले ऐसे होते हैं जिसमें सरकार और आम आदमी दोनों ही अपना परस्पर योगदान निभा सकें। लेकिन सरकार देश की  जीडीपी को पीपीपी मॉडल के जरिए पटरी पर लाने की बातें कर रही हैं। आखिर उस पीपीपी मॉडल से देश को क्या फायदा होगा और इससे देश के आम लोगों को कोई फायदा होगा या फिर नहीं यह सभी जानकारियाँ आपको इस रिपोर्ट में पढ़ने को मिलेंगी।
 
PPP क्या है और क्यूँ है?
पीपीपी यानी कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, अगर आसान भाषा में समझे तो इसमें दो या दो से अधिक सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच एक सहकारी समझौता होता है। यह आमतौर पर दीर्घकालिक यानि कि ज्यादा समय के लिए होता है लेकिन भारत में इसका मैक्सिमम टाइम लिमिट 30 साल रखा गया है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत सरकार निजी कंपनियों के साथ अपनी परियोजनाओं को पूरा करती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश में बने हाईवे हैं और सरकार को इस मॉडल का सबसे ज्यादा फायदा वही से हुआ है। पीपीपी मॉडल में तीन या चार अलग-अलग पॉइंट है उसको आप अगर और विस्तार से समझना चाहें तो उसके लिए आपको अगले रिपोर्ट का इंतजार करना होगा। बहरहाल तो आप यह समझें कि यह पीपीपी मॉडल क्या है।

आपको क्या फायदा पहुंचाएगा या सरकार को इससे क्या फायदा होगा। 
सबसे पहले तो यह कि सरकार अपनी जिम्मेदारी किसी भी निजी संस्थान पर थोपना चाह रही है। ताकि उसकी Liability कम हो सके। मान लीजिए सरकार को एक संस्था खड़ा करना है। चाहे वह कोई कंपनी हो स्कूल हो या कोई दूकान ही क्यूँ न हो। लेकिन सरकार इसमें निवेश नहीं करना चाहती, तो इसके लिए वह क्या करेगी। इसके लिए वह निवेशकों को आमन्त्रण देगी। इसके लिए वह टेंडर निकालेगी, ऑक्शन करेगी। कई सारी कंपनियां बिड करेंगी और किसी एक को टेंडर जाएगा। वह कंपनी ही इस संस्था को खड़ा करेगी। अब इससे कंपनियों को क्या फायदा होगा या यह सारी चीजें किस तरीके से काम करती है वह समझने की कोशिश करते हैं। 

जब सरकार किसी भी कंपनी से कोई अनुबंध करती है तो उसमें कई सारे नियम कायदे होते हैं। उन नियमों में काफी कुछ आता है जैसे कि कितने दिन के लिए अनुबंध होगा, कितनी किसकी हिस्सेदारी होगी आदि। यह काम कैसे करता है। मान लीजिए कोई प्राइवेट कंपनी ने टेंडर ले लिया और सरकार के साथ उसका अनुबंध हो गया। अब उसे कंपनी खड़ी करनी तो इससे उसको क्या फायदा होगा। क्योंकि कंपनी खड़ी करने में तो पैसा उसी को लगाना है और बिना वह अपने फायदे के पैसा क्यूँ लगाएगी। तो इसमें फायदा यह होता है कि मान लीजिये कम्पनी ने नै संस्था में पैसा लगा दिया अब उसमें वह प्रोडक्शन करेंगे, प्रोडक्शन होगा सामान बिकेगा और सामान बिकने से पैसा आएगा। ये पैसा कंपनी के पास जाएगा। उसका ग्रोथ होगा और इसका कुछ हिस्सा सरकार के पास जाएगा जैसा अनुबंध होगा उसके हिसाब से।
 
जब कोई कंपनी सरकार से अनुबंध करती है तो उसमें एक तय समय सीमा दी जाती है। मान लीजिए इस मामले में कंपनी को 20 साल का समय दिया जाता है कि 20 साल तक उसमें जितना प्रोडक्शन होगा जो भी सामान बिकेगा जो भी फायदा होगा वह सारा आपका यानि कि कंपनी का होगा। जितने भी सालों का भी अनुबंध हुआ है उतने सालों के बाद वह संस्था, कंपनी सरकार को हैंडओवर कर देगी। 20 साल तक उस संस्था का फायदा कम्पनी ने उठाया और  कंपनी को फायदा हुआ। उसके बाद उस कंपनी को सरकार चलाएगी या फिर अनुबंध और बढ़ा देगी यह सरकार और कम्पनी के उपर डिपेंड करता है। यह तो हुआ पीपीपी मॉडल कि बात। यह तो बात हुई सरकार और कंपनी के बारे में। अब यह आम-आदमी को कैसे प्रवाभित करेगा यह जानते हैं।

इससे आम आदमी को क्या फायदा या नुकसान होगा
अगर एक आदमी किसी भी सरकारी विभाग में अभी एक चपरासी की नौकरी करता है तो उसकी मिनिमम सैलेरी 15 से ₹18000 के बीच में होगी। वहीं अगर वह किसी अधिकारी के पद पर है तो उसकी सैलरी 50, 60, 70 हजार या एक लाख तक हो सकती है। यह उसका फिक्स्ड इनकम है मतलब यह वह सैलरी है जो उसे हर महीने मिलनी ही है। सरकार उसे हर महीने उतना पैसा देगी। लेकिन यही बात जब प्राइवेट कंपनी के तौर पर देखेंगे तो अमूमन सी बात है कि जो चपरासी सरकारी विभाग में 18 हज़ार कमाता था अब वह उस चपरासी की सैलरी 10000 पर पहुंच जाती है। यही नहीं जो अधिकारी सरकारी विभाग में 1 लाख कमा रहा था  उसकी सैलरी 30 से 40,000 के अंदर सीमित हो जाती है। सैलरी कम हुई और ज़िम्मेदारी ज्यादा हो गई। आपको प्रोडक्शन का भी ख्याल रखना है और साथ ही आपको इस बात का डर भी रहेगा की हो सकता है अगले महीने आपकी नौकरी रहे या ना रहे यानी कुल मिलाकर आपके ऊपर तलवार 24 घंटा लटकती रहेगी। तो आपको अपनी नौकरी भी बचानी है और कंपनी को फायदा भी पहुँचाना है।

दाल रोटी खा सकेंगे बस
कुल मिलाकर आम-आदमी को इससे जितना फायदा है उससे कहीं ज्यादा नुकसान है। मान लीजिए नौकरियां बढ़ेंगी लेकिन जो घटेगा वह है आपका मासिक आय। आपको सिर्फ उतना ही दिया जाएगा जितने में आप दाल रोटी सही से खा पाए। यह ठीक उसी तरीके का है जिस तरह के हालात अभी चीन में है। चीन में किसी भी कर्मचारी की सैलरी 15, 20, 30 हजार से ज्यादा नहीं होती है और उसी मॉडल पर भारत अपने आप को आगे बढ़ा रहा है।

क्या सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है!
यह ठीक उसी प्रकार है कि आपने एक दुकान बनवाई उस पर एक दुकानदार को बिठा दिया और उसे बोला कि 20 साल तक तुम इसे चलाओ 20 साल के बाद यह दुकान मेरा। अब उसमें खटने वाले एम्पलाई से वह जैसा चाहे वैसा काम ले सकता है और आपको करना पड़ेगा आप मना नहीं कर सकते। मना कर दिए तो आपकी जगह कोई और वही काम करेगा। क्या जीडीपी बढाने के लिए सरकार के पास यही एक उपाय था ? क्योंकि जब सरकार कोई फैसला लेती है तो उसके पीछे कई सालों की रिसर्च और कई एक्सपर्ट्स काम कर रहे होते हैं।

क्या यही एक उपाय था ? 
अगर आप ऐसा मानते हैं तो यकीन कीजिए आपको अपना माइंडसेट बदलने की जरूरत है। मान लीजिए आप किसी सरकारी विभाग में बाबू हैं और आपकी सैलरी ₹50,000 मासिक है। जो आपको हर महीने मिलनी ही मिलनी है। तो जब आदमी को एक फिक्स्ड इनकम मिलता है तो आदमी के दिमाग में रहता है कि अगले महीने मेरे पास ₹50,000 आने वाले हैं वह ₹50,000 का पूरा इस्तेमाल करता है। और इसका फायदा मार्केट यानि कि इकॉनमी को होता है। यह सारा एक चैन प्रोसेस है। आदमी मार्केट से सामान खरीदेगा उसके पास टू व्हीलर है कल फोर व्हीलर लेगा, फोर व्हीलर है तो बंगला लेगा आदि जो भी है इन चीजों का इस्तेमाल करेगा यानी कि मार्केट को फायदा पहुंचेगा। सामान खरीदेगा तो डिमांड भी बढ़ेगा, डिमांड बढ़ेगा तो प्रोडक्शन भी बढेगा, कुल मिलाकर मार्केट बढ़ेगा तो इससे सरकार को नुकसान कहां था। इससे सरकार को नुकसान नहीं था बल्कि सरकार सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है। 

सरकार अपने उपर कोई भी बात नहीं आने देना चाहती तो फिर आप सरकार किस बात के 
अगर आप चीन का इतिहास पढ़ेंगे तो आज से 30 साल पहले वहां की सरकारों ने भी यही किया था। इससे हुआ क्या जो वहां का आम आदमी था वह पूरे रूप से सरकार पर निर्भर हो गया। सरकार जनसंख्या पर हावी होती गई और इसका खामियाजा भुगतना पड़ा वहां के लोकल लोगों को। प्रोडक्शन बढ़ा जीडीपी भी बढ़ी लेकिन उसकी कीमत किसने चुकाई, वहां की आम जनता ने। भारत भी शायद उसी ओर अग्रसर है यहां भी सरकार अपनी जिम्मेदारियां खत्म करना चाहती है और सारी चीजें यहां के बड़े उद्योगपतियों के हाथ में देना चाहती है। क्या जीडीपी को सुधारने का यही एक तरीका था नहीं बिल्कुल नहीं जीडीपी और बहुत सारे तरीकों से सुधारी जा सकती है लेकिन क्योंकि सरकार अपने ऊपर जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती इसलिए उसने यही चुना। 

सरकार जब कोई फैसला लेती है तो उसका सीधा फायदा जनता को होना चाहिए। लेकिन इस मामले में बात थोड़ी अलग है। ये पूरा एक चैन है इससे जो सबसे आखिरी शख्स लाभान्वित होगी वह जनता है। कुल मिलाकर अब आप या तो नौकरियां दीजिये या फिर किसी सरकारी कम प्राइवेट कंपनी का प्रोडक्शन बढ़ाकर उसको फायदा पहुचाइए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button