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तेल कंपनियों से सरकार मांग रही है मदद ,देने होंगे इतने करोड़ !

  • सार्वजनिक तेल कंपनियों से 19,000 करोड़ मांग रही केंद्र सरकारONGC और इंडियन ऑयल को देनी हाेगी सबसे अधिक रकम

 दिल्ली :देश में आर्थिक सुस्‍ती का माहौल है| केंद्र इस माहौल से निकलने के लिए तरह-तरह की योजना बना रही है . कुछ दिन पहले एक खबर सामने आई थी की केंद्र सरकार आरबीआई से 45 हजार करोड़ की मदद मांग सकती है | अब इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों से 19,000 करोड़ रुपये के डिविडेंड (लाभांश) की मांग की है|  यह सरकार की ओर से डिविडेंड के तौर पर मांगी गई अब तक की सबसे बड़ी रकम है |
 आइये जानते हैं की क्या होता  डिविडेंड  (लाभांश)
डिविडेंड यानी लाभांश का मतलब अपने  ''सहयोगी'' के साथ मुनाफा साझा करना होता है. शेयर मार्केट की भाषा में ''सहयोगी'' का मतलब शेयर होल्‍डर से है. कंपनियां अपने शेयर होल्‍डर को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं|  मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयर होल्‍डर को डिविडेंड के रूप में देती हैं|  डिविडेंड देने का फैसला कंपनी की बोर्ड मीटिंग में लिया जाता है|  यह पूरी तरह कंपनी के फैसले पर निर्भर करता है|
सरकार क्‍यों मांगती है डिविडेंड ?
जिन कंपनियों यानी पीएसयू में सरकार की हिस्‍सेदारी होती है उसमें वह बेहिचक डिविडेंड की मांग करती है.| वहीं पीएसयू कंपनियां भी अपने मुनाफे को ध्‍यान में रखकर सरकार को डिविडेंड देती हैं | लेकिन अब केंद्र सरकार तेल कंपनियों से डिविडेंड के तौर पर 19 हजार करोड़ रुपये की मांग कर रही है | तेल कंपनी ONGC और इंडियन ऑयल से तो ये तक कहा गया है कि वे इस कुल रकम में से करीब 60 फीसदी यानी 11 हजार करोड़ का इंतज़ाम करें ।
किसे कितना देना है
इकोनॉमिक टाइम्‍स की रिपोर्ट की मानें तो  ONGC को करीब 6,500 करोड़ रुपये, इंडियन ऑयल को 5,500 करोड़, BPCL को 2,500 करोड़, GAIL को 2,000 करोड़, ऑयल इंडिया को 1,500 करोड़ और इंजीनियर्स इंडिया को 1,000 करोड़ रुपये बतौर डिविडेंड सरकार को देने पड़ सकते हैं |

दिक्‍कत क्‍या है?
कोई कंपनी डिविडेंड तब ही जारी करती है जब वह मुनाफे में होती है|  लेकिन बीते कुछ समय से तेल कंपनियों की हालत ठीक नहीं है, यही वजह है कि वह डिविडेंड की इतनी बड़ी रकम देने के लिए तैयार नहीं हैं |  कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि इतनी बड़ी डिमांड करते समय यह भी तो देखा जाना चाहिए कि कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी पिछले साल जितनी नहीं है| अधिकारी माली हालत की और इशारा कर रही है |

अभी सरकार को क्‍यों जरूरत पड़ी?
दरअसल, सरकार के लिए चालू वित्त वर्ष काफी मुश्किल नजर आ रहा है. इस साल आर्थिक सुस्ती के चलते विकास दर 11 साल के सबसे निचले स्तर (पांच फीसदी) पर रह सकती है. वहीं सरकार करीब 19.6 लाख करोड़ रुपये राजस्व की कमी से जूझ रही है. जीएसटी और टैक्‍स कलेक्‍शन भी उम्‍मीद के मुताबिक नहीं हो सका है |

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