भोपाल: तो क्या शिवराज सिंधिया के आगे असहाय हो गए, मंत्रीमंडल विस्तार में सिंधिया समर्थको को मिली जगह ने खोली मप्र के राजनीति की एक परत
भोपाल: तो क्या शिवराज सिंधिया के आगे असहाय हो गए, मंत्रीमंडल विस्तार में सिंधिया समर्थको को मिली जगह ने खोली मप्र के राजनीति की एक परत
भोपाल/राजकमल पांडे। मध्यप्रदेश की राजनीति में जिस तरह उथल-पुथल मचा हुआ है और जिस निरंतरता से राजनीति औरों को खुश करने में की जा रही है उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि मप्र की राजनीति का भविष्य बहुत जल्द चौपट होने की दहलीज पर आ जाएगा. ऐसा इस लिए भी कहा जा सकता है कि क्योंकि शिवराज जिस तरह सिंधिया के आगे नतमष्तक हैं उस लिहाज से तो यही कहा जा सकता है कि प्रदेश में शिवराज सिंधिया की जमीन बनाने में लग गए हैं. राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट और गोविन्द सिंह राजपूत की मंत्रिमंडल में इंट्री हो गई है. इन दो चेहरों को मंत्री बनाने के लिए सिंधिया उपचुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान पर दबाव बनाए हुए थे. चौहान पर दबाव पार्टी के वरिष्ठ विधायकों की ओर से भी था, अपितु किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई. वहीं सिलावट और राजपूत को मंत्री बनाए जाने का संदेश स्पष्ट करता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को जिस तरह से महत्व मिल रहा है, उस लिहाज से इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री चौहान सिंधिया की जमीन बनाने में पीछे हैं.
उल्लेखनीय है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 विधायकों को लेकर जिस तरह कांग्रेस की नीव हिलाई थी, उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि शिवराज सिंधिया को लेकर कोई जोखिम मोड नहीं लेंगे. और सिलावट ने जिस शिव-ज्योति की जोडी का हवाला देकर प्रदेश की राजनीति को मजबूत करने की बात कही है, उसमें यह बात भी फिट बैठता है कि शिवराज, सिंधिया के आगे नतमष्तक ही हैं, वहीं भाजपा की पंद्रह माह बाद सरकार में वापसी का रास्ता खुला. भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने सिंधिया की सहमति से ही शिवराज सिंह चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अच्छा तालमेल दिखाई दिय. सिंधिया ने इस कैमेस्ट्री को शिव-ज्योति एक्सप्रेस का नाम दिया. इन दोनों नेताओं के संयुक्त प्रयासों से ही उपचुनाव में भाजपा मजबूत होकर उभरी. कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.
भाजपा में सिंधिया की पूछ-परख से कांग्रेस हैरान है. मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा कहते हैं कि ऐसा असहाय मुख्यमंत्री पहली बार देखा. इससे पहले कांग्रेस सिलावट-राजपूत के मंत्री न बन पाने को लेकर सिंधिया का मजाक उड़ा रही थी. विधानसभा उपचुनाव के नतीजे दस नवंबर को आए थे. तीन मंत्री चुनाव हार गए थे. इनमें दो इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं. एक अन्य एंदल सिंह कंषाना भी सुमावली से चुनाव हार गए. शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक कुल चौदह गैर विधायकों को मंत्री और राज्यमंत्री बनाया गया था. चुनाव हार जाने के कारण इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया का इस्तीफा 1 जनवरी को मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था. एंदल सिंह कंषाना ने चुनाव परिणाम आने के बाद ही पद छोड़ दिया था. छह माह की अवधि में विधायक न चुने जाने के कारण सिलावट और राजपूत ने 20 अक्टूबर को मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. चुनाव जीतने के बाद भी मंत्रिमंडल में वापसी न होने से शिव-ज्योति की जोड़ी टूटने की चर्चाएं चल निकली थीं. उपचुनाव के बाद सिंधिया की लगातार भोपाल यात्रा को भी दबाव की राजनीति के तौर देखा गया.
गौरतलब है कि वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा ने अपनी पंद्रह साल पुरानी सरकार गंवा दी थी. शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में आई कमी को बड़े कारण के तौर पर देखा गया. भाजपा की सरकार में वापसी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के पाला बदलने के कारण हुई. सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में प्रवेश से भाजपा के आतंरिक समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा गए हैं. सबसे ज्यादा असर ग्वालियर-चंबल इलाके में पड़ा. निमाड, मालवा भी अछूते नहीं रहे. पार्टी के भीतर विभिन्न स्तरों पर सिंधिया के विरोध के स्वर भी सुनाई दिए. सिंधिया के परंपरागत विरोधियों ने उन्हें कमजोर करने की पहली कोशिश उपचुनाव के उम्मीदवार तय करते समय की. पार्टी ने अपने वादे के अनुसार इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया. इससे पहले चौदह लोगों को मंत्री बनाकर पार्टी सिंधिया को लेकर अपनी रणनीति का संकेत दे चुकी थी. सिंधिया समर्थकों को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने अपने कई पुराने साथियों को हासिए पर डाल दिया. राजेन्द्र शुक्ला और रामपाल सिंह का नाम उल्लेखनीय है. वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई जैसे पुराने विरोधी भी अपने आप किनारे लग गए. शिवराज सिंह चौहान के लिए अब नए और पुराने भाजपाईयों के बीच संतुलन बनाना बेहद चुनौती भरा होगा.