Social Bullying : दिल्ली में एक 17 साल का बच्चा एक लड़की के डर से मर गया, अब कोई नहीं चलाएगा मी टू अभियान
सोशल बुलीइंग (Social Bullying) समाज के लिए कितना हानिकारक है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की एक सत्रह साल का लड़का खुद की जान ले लेता है , आखिर क्यों ?
दरअसल कुछ समय पूर्व एक लड़की ने अपने सोशल अकाउंट पर अपने ऊपर हुए सेक्सुअल हैरेसमेंट के बारे में बात करते हुए मृत लड़के पर आरोप लगता था कि उसने उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की थी। तथाकथित घटना 3 साल पूर्व की है ,चलिए इस बात पर सवाल जवाब किया जा सकता है की लड़की को अब यह घटना क्यों याद आ रही है। मगर सोचने की बात यह है कि क्या अब सोशल मीडिया आपको इंसाफ दिलाएगा और अगर ऐसा है , तो फिर देश में पुलिस ,कोर्ट की भूमिका पर गहरा सवाल उठना लाजमी है।
मुझे याद आता है तराना बुर्के का मी टू अभियान जहां उन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग इसलिए किया था ताकि महिलाएं अपने ऊपर हो रहे उत्पीड़न का जिक्र कर सके और उन्हें इंसाफ मिल सके ,ये आपने आप में एक बड़ा प्रयोग था ,लेकिन क्या मीटू का दुरूपयोग नहीं किया जा सकता है ! क्या एक पुरुष उत्पीड़न का शिकार नहीं हो सकता है। चूंकि पुरुष उत्पीड़न संबंधी मामले काम प्रकाश में आते हैं ,तो क्या हमें इस बात को दरकिनार कर देना चाहिए, ये महज एक सवाल है ! सोशल मीडिया आपको एक बड़ा प्लेटफॉर्म तो देता है ,जहां आप आपनी बातों को दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं ,मगर कभी कभी ये कम्युनिकेशन एकमर्गी हो जाता है। सोशल मीडिया को पूर्वाग्रह का शिकार बोल देना कहीं गलत नहीं होगा ,अगर आप बेकसूर हैं लेकिन आप पर आरोप किसी लड़की ने लगाया है ,तो यहां मौजूद लोग आपकी बात को नहीं सुनेंगे और ऐसे मामलों की एक लंबी फेहरिस्त है। जहां मात्र लड़की होने की वजह से गलत मामलों में पुरुष को लानत और जिल्लत का सामना करना पड़ा है।
महिला सशक्तिकरण के आड़ में किए गए सभी गलत काम ,महिला सशक्तिकरण को कमजोर ही करेगा नाकी मजबूत। महिलाओं को हर तरीके से आगे बढ़ाना हमारा और समाज का लक्ष्य होना चाहिए ,मगर ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने वाले आरोपियों को सजा दिलाना भी समाज का ही काम है।