विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा और कांग्रेस से नाराज कई बड़े नेता बसपा का दामन थाम लेते हैं। पार्टी खुशी-खुशी टिकट देने में भी उन्हें देर नहीं करती भले ही पुराने कार्यकर्ता नाराज हो जाएं। पार्टी के बैनर से उम्मीदवार जीतते भी हैं पर वह ज्यादा दिन तक पार्टी का झंडा लेकर नहीं चल पाते। वह भाजपा या कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं।
मध्यप्रदेश ही नहीं, राजस्थान में भी यही स्थिति है। मप्र की बात करें तो वर्ष 2018 में बसपा से संजीव कुशवाह और रामबाई सिंह जीती थीं। कुशवाह भाजपा में चले गए थे, पर विधानसभा चुनाव में जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वह फिर भिंड विधानसभा से बसपा से चुनाव मैदान में उतरे।
इसके पहले वर्ष 2013 में रैंगाव विधानसभा सीट से जीतीं ऊषा चौधरी भाजपा में शामिल हो गई थीं। वहीं, मनगवां से जीती शीला त्यागी कांग्रेस में शामिल होकर इसी सीट से इस बार चुनाव लड़ रही हैं। अंबाह सीट से जीते सत्य प्रकाश सखवार कांग्रेस में चले गए थे। इस चुनाव के पहले वह भाजपा के हो गए। वर्ष 2018 में राजस्थान में बसपा से छह उम्मीदवार जीते थे। यह सभी कांग्रेस में चले गए थे।
वर्ष 2008 में बसपा से सात उम्मीदवार जीते थे, पर यह सभी पाला बदल चुके हैं। रीवा जिले की त्योंथर सीट से जीते रामगरीब आदिवासी अब कांग्रेस के साथ हैं। वह सिरमौर सीट से चुनाव भी लड़ रहे हैं। सतना के रामपुर बघेलान से बसपा विधायक रहे राम लखन सिंह कांग्रेस में चले गए थे।