मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है जिनके भगवान श्री गणेश, जानिए उनका यह अद्भुत रूप..

भोपाल/निशा चौकसे:- गणेशोत्सव यानि धर्म, समाज और संस्कृति में प्रथम पूज्य के रूप में मान्य भगवान श्री गणेश की आराधना का उत्सव, आज गणेश उत्सव का दूसरा दिन है, भगवान श्री गणेश को अनेकों नामों से जाना है, जिसमे एक प्रमुख नाम भालचन्द्र भी है. भालचन्द्र यानि की {मस्तक पर चंद्रमा} आपको बताते है की भगवान श्री गणेश जी को इस नाम से क्यों पुकारा जाता है, भालचंद्र का अर्थ है, जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है। गणेश जी के इस स्वरूप के बारे में गणेश पुराण में एक कथा है, एक बार चंद्रमा ने आदिदेव गणपति का उपहास किया, जिससे गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम किसी के देखने योग्य नहीं रह जाओगे। देवगणों के अनुरोध पर गणेश जी ने अपने शाप को सिर्फ भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष चतुर्थी तक सीमित कर दिया। गणेश जी ने कहा – केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम अदर्शनीय रहोगे, जबकि प्रत्येक मास की कृष्णपक्ष चतुर्थी को तुम्हारा मेरे साथ पूजन होगा। तुम मेरे ललाट पर स्थित रहोगे। इस प्रकार गजानन मस्तक पर चंद्रमा धारण कर भालचंद्र बन गए।

भालचंद्र स्वरूप के पीछे का संदेश
गणेश जी के भालचंद्र स्वरूप के पीछे छिपे संदेश को समझते हैं, चंद्रमा मन का प्रतिनिधि है। गणपति के मस्तक पर चंद्रमा यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक व्यक्ति का मस्तिष्क जितना शांत होगा, उतनी ही कुशलता के साथ वह अपना काम कर सकेगा। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दिमाग का ठंडा होना अति आवश्यक है। शांत चित्त से बनाई गई योजना अवश्य सफल होती है।

संकटो को दूर कर शांतचित्त रहने की प्रेरणा देता भालचंद्र स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार, चंद्रमा को औषधियों का स्वामी और मन का कारक माना जाता है। चंद्रदेव की पूजा के दौरान महिलाएं संतान के दीर्घायु और निरोगी होने की कामना करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने से अखंड सौभाग्य का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। कार्तिक मास की कृष्णपक्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी ही करवा चौथ के नाम से जानी जाती है, इसलिए इस दिन परिवार में आसन्न संकटों को दूर करने के लिए भालचंद्र स्वरूप श्रीगणेश की पूजा की जाती है, जो हमें दांपत्य जीवन में ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शांतचित्त रहने की प्रेरणा देती है।

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