तेलंगाना हाईकोर्ट ने दिए आदेश,कहा- हैदराबाद एनकाउंटर में पुलिस वालो के नाम सहित एफआईआर दर्ज हो
वेटनरी डॉक्टर का रेप कर जला देने के मामले में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद हैदराबाद पुलिस द्वारा एनकाउंटर में चारो आरोपी मारे गए। और पुलिस वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई लेकिन एफआईआर में पुलिस वालो का नाम नही लिखा गया इस बात पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने सवाल खड़े कर दिया हैष
क्या कहां तेलंगाना हाईकोर्ट ने
पुलिस एनकाउंटर के खिलाफ दायर पीआईएल की सुनवाई के दौरान तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एडवोकेट जनरल से पूछा कि एनकाउंटर में शामिल पुलिसवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है या नहीं? अदालत ने पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी (PUCL) विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए. जवाब में एडवोकेट जनरल ने बताया कि एफआईआर की गई है, लेकिन पुलिसकर्मियों को एफआईआर में नामजद नहीं किया गया है. इस पर आपत्ति जाहिर करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ औपचारिकता के लिए एफआईआर दर्ज नहीं होनी चाहिए. अदालत ने साफ कर दिया कि पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया जाना चाहिए.
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हाल ही में रिटायर हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने इसी साल जुलाई में अपने एक फैसले में साफ किया था कि पुलिस एनकाउंटर में अगर किसी इंसान की जान जाती है, तो एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी होगी और पुलिसवालों को मुकदमे का सामना करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की 5 जजों की बेंच के एक 10 साल पुराने फैसले को सही बताते हुए यह आदेश दिया था. 2006 में 8 नक्सलियों को एनकाउंटर में मार गिराने के एक मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि आत्मरक्षा का हवाला देकर पुलिस खुद को कानून से बचा नहीं सकती और सिर्फ मजिस्ट्रेट जांच को पूरा मुकदमा नहीं माना जा सकता. एनकाउंटर में शामिल पुलिसवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और उन्हें मुकदमे का सामना करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को सही माना और कहा कि पीयूसीएल विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश सभी पर लागू होंगे.