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भगतसिंह के राजनीतिक दस्तावेज, मैं नास्तिक क्यों हूँ से लेकर इंकलाब जिंदाबाद पर एक नज़र ,शहीद भगत सिंह अमर हैं

” भगतसिंह के राजनीतिक दस्तावेज ” ' मैं नास्तिक क्यों हूँ ' से लेकर “इंकलाब जिंदाबाद ” पर एक नज़र ,शहीद भगत सिंह अमर हैं 

'भगतसिंह के राजनीतिक दस्तावेज' पढ़ते हुए  हैरत होती रही। इतनी कम उम्र में राजनीति की , मुद्दों की उनमें बहुत स्पष्ट समझ मिलती है। उनकी स्टडी भी कमाल है। कितना कुछ महज 23 साल में पढ़ -लिख डाला। जिसमें ' मैं नास्तिक क्यों हूँ ' जैसा विचारोत्तेजक निबंध भी शामिल है। लगभग सभी विषयों पर उन्होंने जेल डायरी में अपने विचार लिखे हैं। पंजाबी पत्रिका 'किरती' में उनके तमाम लेख से उनके परिपक्व विचारों का पता लगता है।

उसी कम उम्र में नौजवान भारत सभा , पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन , बाल भारत सभा , बाल स्टूडेंट्स यूनियन जैसे संगठन भी बनाए। सांप्रदायिकता , अछूत समस्या , नास्तिकता पर उनका लिखा हैरत में डाल देता है। ये कमसिन उम्र और ये शोले सी लपक ..प्यार होने लगेगा उनकी दिलेरी और समझ से ……….साथ ही एक बात और दिमाग़ में आएगी कि हमसे कहाँ चूक हुई जो आज के युवाओं का इस तरह का दिमागी स्तर है। जिस उम्र के भगतसिंह थे उस उम्र के आज के लड़कों की समझ देखिए। वो मंदिर मस्जिद जैसे फ़िज़ूल मुद्दों में उलझे हैं। वो धर्म के नाम पर कट्टर हो रहें हैं। नफरती बन रहे हैं। लोगों को ट्रोल कर रहे हैं। उनकी अपनी कोई समझ ही नही है किसी भी मुद्दे पर …उन्हें भेड़ – बकरी की तरह जिधर सत्ता हांक दे ,चल देते हैं। 
 उनके हाथ में किताबों की स्टडी से पाई अपनी समझ के बजाय पार्टियों के आई टी सेल से निकला वाट्स एप यूनिवर्सिटी प्रदत्त फर्जी ज्ञान है। जो उनके दिमाग को शार्प करने के बजाय कुंद बना रहा है। 
 शायद हमारी शिक्षा या संस्कार में जरूर कोई कमी है। जो सत्ता की आंख में आंख डालकर प्रश्न पूछने वाले भगतसिंह बजाय समाज में मॉब लिंचिंग करने वाले वहशी बन रहे हैं। आज 22 साल का युवा 'मैं नास्तिक क्यों हूं' जैसा निबंध शायद ही लिख पाए क्योंकि वो मंदिर – मस्जिद की जरूरत पर बहस कर रहा। 
 अब ये दोष किसका है जो एक विकसित के बजाय पिछड़ी सोच का समाज बन रहा है ,ये सोचने वाली बात है। 

आज दिलेर और प्रतिभाशाली “शहीद भगतसिंह” के जन्मदिन पर उनको कोटि-कोटि प्रणाम।

“इंकलाब जिंदाबाद ” की कहानी 

  • आज़ादी के समय हर किसी की आवाज बन चुका था 'Inquilab Zindabad'. लेकिन कई लोगों को ये भ्रम है कि ये नारा क्रांतिकारी भगत सिंह ने दिया था, लेकिन ऐसा नहीं है, दरअसल ये नारा किसी और ने लिखा था और ये नारा भगत सिंह के जन्म से पूर्व ही लिखा जा चुका था.
  • सबसे पहली बार ये नारा Mexican Revolution के समय Viva la Revolution के नाम से शुरू हुआ, जिसका मकसद था लोगों में चेतना पैदा करना जिससे वो सरकार के द्वारा हो रहे जुल्मों के खिलाफ लड़ सकें.
  • Mexican Revolution के इस नारे का असर इतना ज्यादा हुआ कि कई अन्य देशों में इस नारे का इस्तेमाल अपने-अपने ढंग से होने लगा. हिंदुस्तान में इस नारे को 'Inquilab Zindabad' का नाम दिया गया.
  • ये नाम दिया मशहूर उर्दू शायर मौलाना हसरत मोहनी ने, जो एक क्रांतिकारी साहित्यकार, शायर, पत्रकार, इस्लामी विद्वान और समाजसेवक थे. उर्दू भाषा के कवि “हसरत मोहानी” इस नारे के असली जन्म दाता हैं यह नारा उन्ही की कलम द्वारा वर्ष 1921 में लिखा गया था.
  • जिसे साल 1929 में भगत सिंह ने पहली बार आवाज दी.
  • ना केवल आवाज़ दी ,शहीद भगत सिंह की आवाज़ औऱ हौंसले इतने बुलंद थे की मात्र 23 साल की उम्र में वे जाते -जाते , देश के युवाओं में क्रांति के जोश को इतना भर गए ,आज़ादी की दीवानगी हर एक व्यक्ति कतरे-कतरे में समा गई औऱ सभी आजादी के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हो गए थे | 

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