20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने दिया था मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा, आज मना रहे हैं सम्मान दिवस, राजनीति में बड़े बदलाव के लिए "वो सत्रह दिन" ही थे काफी..

20 मार्च को कमलनाथ ने दिया था मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा, आज मना रहे हैं सम्मान दिवस, राजनीति में बड़े बदलाव के लिए “वो सत्रह दिन” ही थे काफी…

भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव :– मध्य प्रदेश की सियासत में कभी भी कुछ भी बदल सकता है. प्रदेश की जनता यह भलीभांति समझती है..

 आज 20 मार्च है, यह दिन पूरे मध्यप्रदेश को हमेशा याद रहेगा क्योंकि मध्य प्रदेश की राजनीति में इस दिन बड़े फेरबदल हुए थे.. 20 मार्च 2020 को सत्ता पलट हुआ और कमलनाथ ने अपना इस्तीफा दिया.

 आज के दिन ही 1 साल पहले कांग्रेस की सरकार गिरी थी तो वहीं आज के दिन को ही कांग्रेस सम्मान दिवस के रूप में मना रही है.

 मध्य प्रदेश पर सिर्फ 15 महीने काबिज रहने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक 22 विधायकों के भाजपा में शामिल हो जाने की वजह से कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा.

लेकिन 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस की सरकार 15 महीनों में ही कैसे गिर गई? इसकी कई वजहें निकलकर सामने आई है. मध्य प्रदेश की सियासत में हुई इस सबसे बड़ी राजनैतिक उठापठक के एक साल पूरे होने पर कमलनाथ सरकार गिरने की पूरी जानकारी सिलसिलेवार तरीके से एबीपी न्यूज़ के वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत द्वारा लिखी किताब “वो 17 दिन” में मौजूद है..

 मध्य प्रदेश की बदलती राजनीति का बेहद सुनियोजित तरीके से इस किताब में वर्णन किया गया है.

इस घटना के एक साल पूरा होने पर 20 मार्च को कांग्रेस जहां “लोकतंत्र सम्मान” दिवस के रूप में मनाने जा रही है, तो वहीं बीजेपी ने इस दिन को “खुशहाली” दिवस मनाने का ऐलान किया है.

कांग्रेस में आपसी कलह थी सरकार गिरने की मुख्य वजह:-

कांग्रेस में धीरे-धीरे अंतर कलह पैदा हो रही था और कांग्रेस के वरिष्ठ जनों को यह सारी बात पता थी पर फिर भी मौका रहते हुए स्थिति को काबू में नहीं कर सके.

ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई को कांग्रेस की सरकार गिरने की बड़ी वजह माना गया. राजनैतिक जानकार मानते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही सिंधिया और कमलनाथ के बीच कई मुद्दों पर शायद सहमति नहीं बन रही थी. लेकिन टीकमगढ़ की एक सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक ऐलान ने इस असहमति को विवाद में बदल दिया था और फिर यही विवाद आखिर में कमलनाथ सरकार गिरने की प्रमुख वजह माना गया.

दरअसल टीकमगढ़ में अतिथि विद्वानों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी मांगे पूरी नहीं होने पर सवाल किया तो सिंधिया ने कहा कि अगर अतिथि विद्वानों की मांगे पूरी नहीं हुई तो वह उनके साथ सड़कों पर उतरेंगे. प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद यह पहला मौका था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी ही सरकार के खिलाफ कोई बयान दिया था.

 बस फिर क्या था सिंधिया के इस बयान के बाद कांग्रेस में हलचल मच गई. हाँलाकि सिंधिया ने यह बड़ा बयान तो दिया पर उन्होंने अब अतिथि विद्वानों के नाम पर चुप्पी साध ली है.

 अतिथि विद्वानों की सेवा में बहाली अभी तक नहीं हुई है.

 उस वक्त जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभा में अपना बयान दिया तो कमलनाथ ने कहा कि ठीक है आप सड़क पर उतर जाइए. अब क्या था स्थिति और बिगड़ती चली गई.

और फिर 5 मार्च को कुछ ऐसा हुआ जिससे बड़ा भूचाल आ गया.मध्य प्रदेश के निर्दलीय, बसपा, सपा और कांग्रेस के करीब 11 विधायकों के गायब होने की खबर से सामने आई. बताया गया ये विधायक मानेसर और बेंगलुरू की होटल में रूके हुए हैं. जिसके बाद मध्य प्रदेश की सियासत में एक बड़ा सियासी ड्रामा शुरू हो गया

 6 मार्च को कांग्रेस विधायक ने दिया पहला इस्तीफा :

पहले 5 मार्च को विधायक मध्य प्रदेश से नदारद हुए, और फिर 6 मार्च को उससे भी बड़े बदलाव हो गए.गायब हुए कांग्रेस विधायकों में शामिल हरदीप सिंह डंग ने अचानक इस्तीफा दे दिया. डंग के इस्तीफे के बाद कमलनाथ एक्टिव हुए कांग्रेस के सभी विधायकों को भोपाल बुलाया गया और सभी को राजधानी न छोड़ने के निर्देश दिए गए. इस बीच कांग्रेस ने देर रात तक जद्दोजहद करके 6 विधायकों की वापसी करा दी. लेकिन पांच विधायक गायब रहे. इन विधायकों में हरदीप सिंह डंग, रघुराज सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा शामिल थे.

हरदीप सिंह डंग के इस्तीफे के बाद अचानक 7 मार्च को सिंधिया समर्थक विधायक महेंद्र सिंह सिसोदिया ने एक ऐसा बयान दिया जिससे प्रदेश में एक फिर सियासी भूचाल आया. सिसोदिया ने कहा अगर कमलनाथ सरकार ने सिंधिया की उपेक्षा की तो इस सरकार पर संकट आ जाएगा. यह सब कुछ चल ही रहा था कि इस बीच 8 मार्च को गायब विधायक बिसाहूलाल सिंह अचानक वापस भोपाल लौट आए.

बिसाहूलाल कमलनाथ से इस बात पर नाराज थे क्योंकि उन्हें मंत्री पद नहीं मिला था. वह कांग्रेस से छठवीं बार विधायक बने थे.

 और फिर 9 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 19 विधायक अचानक गायब हो गए इनमें छह मंत्री थे.

खबर मिली की ये सभी 22 विधायक बेंगुलरू के एक होटल में हैं. गायब होने वाले इन विधायकों में गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया शामिल थे. जो कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे. इसके अलावा विधायक हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्ना लाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिरराज दंडौतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मनोज चौधरी, बिसाहूलाल सिंह, ऐंदल सिंह कंसाना शामिल थे.

 वहीं दूसरी तरफ खबर मिली मिली कि देर रात ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने उनके आवास पर पहुंचेंगे . इसके बाद कांग्रेस में और भी ज्यादा हड़कंप मच गई.

और फिर आया 10 मार्च…..

10 मार्च मध्य प्रदेश की राजनीति में उन खास दिनों में गिना जाएगा जिससे 15 साल के बाद बनी कांग्रेस सरकार सिर्फ 15 महीनों में लौट गई.

 ज्योतिरादित्य सिंधिया 10 मार्च की सुबह पहले अमित शाह से मिले और फिर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इधर कांग्रेस में हड़कंप मची हुई थी.

 इस बीच ना तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मीडिया से चर्चा की और ना ही अपनी मुलाकात को लेकर किसी भी सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट किया.

 गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के कुछ देर बाद कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अपना इस्तीफा सौंप दिया.

उन्होंने इस्तीफा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा. इधर सिंधिया के इस्तीफे के बाद बेंगुलरू में मौजूद 22 विधायकों ने भी एक साथ अपना इस्तीफा दे दिया. जिससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद प्रदेश में उनके समर्थकों में इस्तीफा देने की होड़ मच गई. कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी…

सिंधिया 11 मार्च को हुए भाजपा में शामिल :-

 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अपना इस्तीफा सौंपा और उसके बाद 11 मार्च को उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की.

17 साल तक कांग्रेस से राजनीति करने वाले सिंधिया को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने बीजेपी की सदस्यता दिलाई. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही 11 मार्च की शाम भोपाल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. इस बैठक में सिर्फ 93 विधायक पहुंचे. जिससे साफ हो गया कि कमलनाथ सरकार खतरे में है. उधर बीजेपी में शामिल होने के चंद घंटों बाद ही भाजपा ने अपना राजनैतिक कार्ड खेला और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश से पार्टी का राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया.

इस बीच कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को जयपुर रवाना कर दिया. जबकि बसों में इन विधायकों को भेजा गया कांग्रेस का दावा था कि उनकी सरकार सुरक्षित हैं. इसी दौरान भोपाल में बीजेपी के बड़े नेताओं की भी बैठक हुई. बैठक के बाद बीजेपी ने भी अपने सभी विधायकों को हरियाणा के मानेसर होटल में शिफ्ट कर दिया.

यह पूरा मामला अब राज्यपाल के पास पहुंच गया.14 मार्च को पहली बार एनपी प्रजापति ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी और महेंद्र सिंह सिसौदिया का इस्तीफा स्वीकार कर लिया. इस्तीफा स्वीकार होने के बाद मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश देते हुए विधानसभा में बहुमत साबित करने के निर्देश दिए, लेकिन राज्यपाल के आदेश के बाद कांग्रेस नेताओं ने कहा कि सदन में क्या होगा क्या नहीं होगा यह विधानसभा अध्यक्ष तय करेंगे. यह काम विधानसभा अध्यक्ष का है राज्यपाल का नहीं..

15 मार्च को देर रात तक राजधानी भोपाल में गहमागहमी चलती रही, इस दौरान कमलनाथ ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की. मुलाकात के बाद कमलनाथ ने कहा कि फ्लोर टेस्ट का फैसला विधानसभा अध्यक्ष लेंगे.

 इस दौरान बेंगलुरु और मानेसर मैं बैठे कांग्रेस और भाजपा के विधायक भोपाल आ गए थे.

अब 17 मार्च को मध्य प्रदेश का यह सियासी ड्रामा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.स्पीकर के फैसले के खिलाफ भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां तीन दिनों तक सुनवाई चली. बाद सुप्रीम कोर्ट ने 19 मार्च को बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट कराए जाने के आदेश दे दिए.

20 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने शाम 5 बजे का समय फ्लोर टेस्ट के लिए तय किया. पूरे देश की नजरें इस फ्लोर टेस्ट पर टिकी हुईं थी. क्योंकि इस फ्लोर टेस्ट से MP में बड़े बदलाव के आसार नजर आ रहे थे.

 19 मार्च को कमलनाथ सरकार ने अपने नाराज विधायकों को मनाने की कोशिश की पर विधायक नहीं माने.

 सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट के आदेश दिए थे पर उससे पहले ही कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर अपना इस्तीफा दे दिया.

जिसके बाद मध्य प्रदेश में 17 दिन से चल रहा यह सियासी संग्राम थम गया. मध्य प्रदेश की सियासत में 17 दिन तक घटी यह घटनाएं सूबे के सियासी इतिहास में दर्ज हो गई. 15 साल बाद बनी सरकार महज 15 महीने में गिर गई..

23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार संभाली मध्य प्रदेश की शीर्ष कुर्सी :-

 20 मार्च को जैसे ही कमलनाथ ने अपना इस्तीफा दिया भाजपा में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. कमलनाथ के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया और 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की.

 इस तरह मध्यप्रदेश की बदलती राजनीति के बीच बीजेपी ने इतिहास में अपनी बड़ी जीत दर्ज कराई..

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