इंदौर, गौतम कुमार
इंदौर में कोरोना वायरस असल में क्या तांडव मचा रहा है इसका अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल है। अप्रैल के महीने में इंदौर में 1775 लोगों की मौत हुई थी। अगर औसतन देखा जाए तो इंदौर में हर महीने तकरीबन 1400 से 1500 मौतें होती हैं। लेकिन इन मौत में रोड एक्सीडेंट और अन्य बीमारियों से मरने वाले लोग भी शामिल होते हैं। तो कहीं ऐसा तो नहीं है की इंदौर प्रशासन लोगों से कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों के सही आंकड़े को छुपा रहा है।
औसत से ज्यादा मौते नार्मल या सरकार आंकड़ा छुपा रही है
कोरोनो महामारी से इंदौर शहर में अब तक 96 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन सिर्फ अप्रैल के महीने में 1775 मौतें तो सामान्य और दूसरे बीमारियों से ही हो गई। इन सभी मौतों के आंकड़े शहर के तमाम मुक्तिधाम और कब्रिस्तान में दर्ज है। जिनमें से 1 मौत मर्डर के रूप में हुई है और इक्का-दुक्का मौत रोड एक्सीडेंट के कारण हुई है। अगर कोरोनावायरस से सिर्फ 96 मौतें हुई हैं तो उस शहर में महीने भर में औसतन मौत से ज्यादा इस बार कैसे हुई।
एक्सीडेंट भी नही हुए लॉकडाउन भी है
इंदौर में औसतन महीने भर में 33 मौत रोड एक्सीडेंट से होती हैं जबकि इस बार सिर्फ इक्का-दुक्का मामले ही आए हैं। इसके अलावा लॉकडाउन भी जारी है लोगों का घर से बाहर निकलना भी कम है तो फिर अचानक से मौत के आंकड़ों में इतनी बढ़ोतरी कैसे हुई। अगर औसतन मौतों को देखा जाए तो अप्रैल के महीने में मौत का आंकड़ा कम होना चाहिए था। लेकिन यह कम होने की वजह है और ज्यादा हुआ है
130 से सीधा 400 एक महीने में कैसे
अप्रैल के महीने से पहले इंदौर शहर के चार मुख्य कब्रिस्तानो में शवों के दफनाने का आंकड़ा 130 तक था लेकिन अप्रैल के अंत तक यह मामला 400 से ज्यादा हो गया पुलिस चौक सिर्फ खजाना कब्रिस्तान में अप्रैल माह में तकरीबन 108 शवों को दफनाया गया है जबकि महू नाका कब्रिस्तान में 136 शवों को दफनाने की बात सामने आई है।
ये आंकड़ों की बाजीगरी नहीं तो और क्या
इससे पहले भी ऐसी खबरें आई थी की इंदौर के कब्रिस्तानों में हर रात तकरीबन 13 से 14 लाशें आ रही हैं। लेकिन उस समय प्रशासन ने कहा था कि पिछले 5 सालों का आंकड़ा देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये मौतें कोरोनावायरस से हुई है या औसतन इतनी मौतें शहर में हर महीने होती है।
स्वास्थ्य संचालक का क्या कहना
इधर स्वास्थ्य संचालक डॉ शरद पंडित का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग मृत्यु दर कम करने के लिए एक कमेटी बनाती है और वह कमेटी डेथ ऑडिट करता है। जिससे हमें यह पता चल सके कि अभी मृत्यु दर क्या चल रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि शहर में तकरीबन डेढ़ सौ से ज्यादा मौतें स्वाइन फ्लू की वजह से भी हुई थी लेकिन उसे कोई महामारी घोषित नहीं किया गया था।
इन मौतों की असली वजह क्या है यह तो ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन अधिकारियों के गोल मटोल जवाब इस बात की ओर इशारा जरूर कर रहे हैं किस शहर में कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है जिसे आम लोगों से छुपाया जा रहा है।