शिवराज से लेकर कमलनाथ तक नर्मदा सबके मन को भाई,पर देख इसकी ऐसी हालत किसी ने गौर तक नहीं खाई।

  भोपाल /सोनू कुमार की विशेष रिपोर्ट  : अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा नदी को निर्बुदा के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच बहती है। कई मायनों में यह नदी मध्यप्रदेश और गुजरात के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वैसे गंगा के समान नर्मदा भी हिंदुओं के लिए शुद्ध और पवित्र  नदी मानी जाती है।  हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार 7 पवित्र नदियों की भांति नर्मदा को भी पवित्र नदियों में से एक माना गया है। नर्मदा में बहने वाली पानी का 57 फ़ीसदी उपयोग मध्यप्रदेश करता है।
आइये जानते है नर्मदा में आए विकारों के बारे में :-
प्रदूषण का पर्याय बन चुकी है नर्मदा , नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान नर्मदा संरक्षण के दावे तो कई किए गए मगर इसकी वास्तविकता तो कुछ अलग ही राग अलापती  है। क्योंकि जल प्रदूषण के कारण नर्मदा में रहने वाली 28 जलीय प्रजातियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है। नर्मदा नदी के तट पर चल रहे तमाम तरह के व्यवसाय जिसके कारण नर्मदा का जल प्रदूषित हो रहा है। आखिर क्या है प्रदूषण का कारण ? आपको बता दें की 50 शहरों का दूषित पानी नर्मदा नदी में मिलता है। जिसे रोकने के लिए सरकार वर्तमान में किसी भी तरह की कोई मुहिम छेड़ती दिखाई नहीं दे रही है।नर्मदा में गंदे नालों के पानी का गिरना लगातार जारी है।
इसमें प्रदूषण का आलम तो यह है कि शुद्ध नदियों को मिलने वाला स्वच्छता ग्रेड में नर्मदा A ग्रेड से B. ग्रेड में ख़िसक गई है।
आइए जानते हैं कि नर्मदा में प्रदूषण कम करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार क्या कदम उठा रही है ?
चलिए आपको 2012 से लेकर अभी तक यानी कि 2020 तक सभी कामों और तरीकों के बारे में बताते हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने किसी भी नए कारखाने के प्रसंस्करण चमड़े या लाठर उत्पादों विनिर्माण एसिड और शराब और ऐसी कोई भी वस्तु जो नदी में अपिष्ठ  को छोड़ती है। वैसे कारखानों को अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया था. प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने यह भी फैसला लिया था कि नर्मदा घाट के 5 किलोमीटर की दूरी के भीतर तक लाशों का जलाना प्रतिबंधित कर दिया गया था। तब के शहरी विकास मंत्री बाबूलाल गौर ने कहा था कि हम नर्मदा को दूसरी गंगा नहीं बनने देंगे। जिसके लिए क्लीन नर्मदा ड्राइव बनाया जाएगा जिसे दो चरणों में पूरा कर लिया जाएगा। जिसमें 10 साल और 1000 करोड़ का खर्च सरकार वहन करेगी। उस वक्त यह कहा था कि यह नदी 10% ही प्रदूषित है मगर क्या वास्तविक तौर में भी ऐसा ही है !
अब जरा 2013 इकोनामिक टाइम्स में छपी इस एक रिपोर्ट को समझिए, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड बोर्ड में नर्मदा के पानी को बी कैटेगरी में रखा गया था। मध्यप्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने नर्मदा के पानी को सी कैटेगरी में भी रखा था। तब से लेकर आज तक होशंगाबाद में नर्मदा की स्थिति जस की तस है। फिर क्लीन  नर्मदा ड्राइव का क्या हुआ ! यह समझ से परे है !


आइए अब जानते है, उस समय की शिवराज सरकार में नर्मदा शुद्धिकरण को लेकर किए गए फैसले :
5 माह तक नर्मदा शुद्धिकरण के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया था। जिसे नर्मदा सेवा यात्रा का नाम दिया गया था, साथ ही नर्मदा सेवा समिति का भी गठन किया गया था और काफी आलोचना के बाद नर्मदा किनारे हो रहे गैरकानूनी रेत खनन पर रोक भी लगाई गई थी। आपको बता दें कि ऐसा सब कुछ 2017 में हुआ था। अब 2018 में दिग्विजय सिंह का अपने नर्मदा परिक्रमा के दौरान कही गई बातों को पढ़िए “बहुत आक्रामक तरीके से नर्मदा घाट के किनारे रेत खनन हो रहा है। जिससे नर्मदा का पानी भी दूषित हो रहा है।
तो क्या फैसले सिर्फ जनता को दिखाने – सुनाने के लिए लिए जाते हैं।क्योंकि अगर 2017 में ही रेत खनन पर रोक लगा दी गई थी! तो फिर 2018 में ऐसा कैसे हो रहा था !
आइए अब जानते है नर्मदा नदी के मौजूदा हाल  
नर्मदा के घाटों पर रेत खनन तथा मूर्तियों का विसर्जन लगातार जारी है। मौजूदा समय में भी प्रदूषण का आलम कम नहीं हुआ है। आज भी सीवेज का पानी लगातार रूप से नर्मदा में गिर रही है।
क्या है मंत्री सुरेंद्र सिंह बघेल की तैयारी :-
हाल ही में चंदन खेड़ी में एक 1.58 करोड रुपए की लागत से होने वाले विकास कार्यों का उन्होंने लोकार्पण किया है साथ ही गत वर्ष इन्होंने रबी सीजन 4 . 28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाया। ऐसे कुछ काम है जो इन्होंने किया तो है। मगर  मंत्री जी से सिर्फ एक सवाल है गैरकानूनी रेत माफियाओं ,प्रदूषण पर कब काम होगा ?क्योंकि नर्मदा का पानी पीने लायक नहीं है !

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