खरगोन/बड़वाह से लोकेश कोचले की रिपोर्ट – कोरोना से बचाव के कारण पुरे देश मे लॉक डाउन घोषित किया जा चुका है, जिसका सबसे ज्यादा असर गरिब मजदूरों पर हुआ हैं। जो अपना घर छोड़कर किसी अन्य राज्यो मे काम करने गये थे। सरकार ने लॉक डाउन तो घोषित कर दिया लेकिन लॉक डाउन मे फसे लोगो को सुरक्षित अपने घर कैसे पहुचाया जाये इसे लेकर कोई उचित प्रयास नही किये। जिससे मजदूरो ने आत्मनिर्भर होकर खुद के दम पर ही जैसे तैसे घर जाना उचित समझा।
कोई जुगाड से तो कोई पैदल रवाना हुआ
भुके प्यासे, रोते बिलखते, नंगे पैरो सड़क पर पुलिस के दंडे खाते हुये,या फिर रैलवे ट्रैक का सहारा लेते हुये (जिसका दुखद परिणाम हम सबने देखा है) अपने गाव पहुचे। कुछ की यात्रा जारी हैं। लेकिन रुकिये उनकी समस्या यहाँ खत्म नही हुई है, गांव पहुचते ही साहब जो उनका स्वागत किया जा रहा है, उसके तो क्या ही कहने।
मजदूरो को असुविधा से बचने के लिये क्वारंटीन किया जा रहा हैं। गांव से अलग किसी शासकीय भवन मे जहाँ अन्य लोगो से मेल मिलाप ना हो, यह सही भी हैं। लेकिन जब क्वारंटीन सेंटर मे मिल रही सुविधाओं की बात करे तो हालात निराशाजनक ही मिलते हैं।
यह मामला बड़वाह के उत्तर मे बसे ग्राम जगतपूरा का है, यहाँ पाच दिन पहले गावँ के करीब 19 मजदूर जिसमे 4 बच्चे शामिल है गुजरात से लौटे है, जिन्हे शासकीय माध्यमिक विद्यालय जगतपुरा मे क्वारंटीन किया गया हैं। गावँ के कुछ लोगो ने द लोकनीति को सूचना दी की मजदूरो के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है तथा उचित सुविधाये भी नही मिल पा रही हैं।
द लोकनीति की टीम जब वहा पहुची तो पता चला मजदूरो को दो समय खाना ही दिया जा रहा है जबकी पानी की व्यवस्था मे उन्हे पाँच दिन लगे, तब तक उन्हे खुद ही पास के खेत में पानी लेने जाना पड़ा। बच्चो को मिलाकर कुल 19 लोग है, लेकिन सोने के लिये मात्र पाँच जोडी गद्दे।
स्कूल मे पंखे है पर बिजली नही, उपर से भीषण गर्मी
जानकारी प्राप्त करने के बाद ग्राम पंचायत सचिव को फ़ोन मिलाया गया, पुछा तो गलती का एहसास करते हुये, मजदूरो को उचित सुविधा मुहैया करवाने की बात करने लगे। यह स्थिति आम है क्योकी ये आम गरीब मजदूर है वरना खास लोगो के लिये सरकार ने क्या नही किया।