नई दिल्ली/गरिमा श्रीवास्तव :-देश में आर्थिक मंदी तेज़ी से बढ़ती हुई नज़र आ रही है ,बैंकों के ऋण देने की विकास दर में भारी कमी आई है। ऐसी कमी 58 साल में पहली बार आयी है। वित्त वर्ष 2019 में 13.3 प्रतिशत की दर से ऋण दिए गए। 2020 में 6.5-7 प्रतिशत रहने के अनुमान है। मतलब यह हुआ कि कॉरपोरेट निवेश के लिए लोन नहीं लिए जा रहे। जबकि सरकार ने उनके टैक्स में भी काफ़ी कमी की थी तब भी कोई फ़र्क़ नहीं दिख रहा है।
इस कारण एक चक्र बन रहा है। आर्थिक मंदी के कारण बैंकों का दिया हुआ क़र्ज़ वापस नहीं हो पा रहा है। सात साल में यह पहली बार फिर से बढ़ने वाला है। रिज़र्व बैंक के अनुसार यह मानना है कि बैंक इस झटके को सहन करने में और उनसे बाहर निकलने में सक्षम होंगे।
भारत के मुख्य सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन का कहना है कि 2020 में अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत से बढ़कर 6.5 हो सकती है जिन्होंने आर्थिक समीक्षा में 7 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। अरूप रायचौधरी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि कॉर्पोरेशन कर में कटौती सहित आपूर्ति की दिशा में उठाए गए कदमों से खपत और मांग बढ़ेगी और गैर कर राजस्व से कर, राजस्व में गिरावट की भरपाई हो सकती है।
मंदी के बीच भी केंद्र को लगता है कि दूसरी छमाही में वृद्धि रफ्तार पकड़ेगी।
रिज़र्व बैंक का सरप्लस पैसा लेने के लिए कितना तमाशा हुआ था। रिज़र्व बैंक के गवर्नर चुपचाप पारिवारिक कारणों का बहाना बनाते हुए इस्तीफ़ा दे गए। अब सरकार की नज़र सेबी के पास बचे सरप्लस पर पड़ी है। हाल ही में सेबी से इस बारे में रिपोर्ट माँगी गई है। वित्त क़ानून 2019 के अनुसार सेबी को सालाना सरप्लस का 25 प्रतिशत रिज़र्व फंड में रख बाक़ी 75 प्रतिशत फंड सरकार को देना होगा। पिछले साल 31 मार्च कर सेबी के पास 3,606 करोड़ का ही सरप्लस था।