दमोह की बहू के दस्तावेज बने राम मंदिर निर्माण का आधार

दमोह की बहू के दस्तावेज बने राम मंदिर निर्माण का आधार
दमोह से शंकर दुबे की रिपोर्ट : –
 5 अगस्त को हुए राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के पीछे मेरठ की बेटी और दमोह की बहू का बड़ा योगदान है। जिरह के दौरान उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों को न केवल सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य माना था बल्कि फैसले का आधार भी वही दस्तावेज बने। 
     जी हां यह बात सौ फ़ीसदी सत्य है पूर्व मंत्री जयंत मलैया की धर्मपत्नी डॉ सुधा मलैया के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे उन्हें राम मंदिर होने का प्रमाणिक पर साक्ष्य माना गया है। डॉ मलैया ने आज आयोजित प्रेस वार्ता में इस बात का खुलासा किया । उन्होंने बताया कि 1992 में बाबरी विध्वंस के दौरान 6 से 10 दिसंबर तक वह अयोध्या में मौजूद थीं। जिस वक्त बाबरी ढांचा तोड़ा गया और कारसेवक उसमें से निकले अवशेषों को इधर उधर रख रहे थे तब उन्होंने उन स्तंभों और बड़ी-बड़ी शिलाओ पर देवनागरी लिपि में लिखे गए वाक्य और पूरे स्तंभों की बारीकी से फोटोग्राफी की तथा उनका हिंदी में ट्रांसलेशन कराया। उन शिलाओ में यह बात पुष्ट हुई कि महाराजा जयचंद्र के पौत्र के एक राजा साकेत ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। उसी दौरान वह शिलालेख खोदे गए थे। लेकिन बाद में बाबर ने राम मंदिर ध्वस्त करा कर उन्हीं पत्थरों के ऊपर बाबरी मस्जिद खड़ी करवा दी। दिसंबर 1992 में जब शिलालेखों की फोटोग्राफी की गई तो हाईकोर्ट ने दस्तावेजों के आधार पर यह स्वीकार किया कि बाबरी मस्जिद के पूर्व वहां पर रामलला का मंदिर था। जिसके बाद मामले के विचारण तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे। बाबरी विध्वंस के दौरान उन शिलालेखों की फोटोग्राफी और दस्तावेज जुटाने वाली उस समय वहां मौजूद अकेली इतिहासकार मात्र डॉ सुधा मलैया ही मौजूद थीं। बाद में इन्हीं दस्तावेजों को सुप्रीम कोर्ट में भी प्रस्तुत किया गया । जिसमें बताया गया कि 40 फुट की खुदाई तक पहले 14 स्तंभ तथा बाद में तीन स्तंभ और मिले इसके अलावा वहां पर 5 फीट का एक शिवलिंग भी मिला था। उन दस्तावेजों से यह बात प्रमाणित हुई कि उस समय राम मंदिर परिसर करीब पौने 5 एकड़ भूमि पर विस्तारित था । उन्होंने यह भी बताया कि 1986 में  प्रोफ़ेसर पी वी लाल ने अपनी जांच एवं खुदाई में यह बात प्रमाणित की थी कि जिस जगह बाबरी ढांचा है वहां पर जो स्तंभ पाए गए हैं वह राम मंदिर होना प्रमाणित करते हैं। खास बात यह है कि 18 वीं सदी के ब्रिटिश गजेटियर में भी वहां पर राम मंदिर होने का लेख किया गया है। डॉ मलैया ने बताया कि मध्य काल में कुछ चाटुकार इतिहासकारों ने राम मंदिर होने की बात को नकार कर राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए थे। जिन्हें दस्तावेजों के प्रमाणित होने के बाद करारा जवाब मिल गया है।

Exit mobile version