सादगी पवित्रता, लोकपक्ष है छठ पूजा का महत्व

राजधानी के खटलापुरा स्थित घाट पर हर्ष उल्लास के साथ छठ पर्व मनाया गया। जिसमें बड़ी संख्या में भक्तो द्वारा पूजन अर्चन किया गया। लोक मत के अनुसार आस्था का महापर्व छठ पूजा मुख्य रुप से उत्तर भारत, बिहार,झारखंड, उत्तर प्रदेश  और अब देश  के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर धूमधाम से  मनाई जाती है। छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। 
पौराणिक और लोक कथाओं के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को उपवास कर सूर्य देव की आराधना की थी। छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई है। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की उपासना कर प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्ध्य दिया । किवदंतीयो के अनुसार पांडव की पत्नी द्रौपदी ने भी सूर्य उपसना की। सादगी पवित्रता और लोकपक्ष छठ पूजा का महत्व है। भक्ति और अध्यात्म से शुरू हुई इस पर्व में बांस के बने सूप मिट्टी के बर्तन गुड चावल और गेहूं का अत्यधिक महत्व है। लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय होता हैं। जिसमें पहले दिन नहाए खाए से शुरू होता है। उस दिन व्रती चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा चावल का भोजन पूजा और प्रार्थना के साथ ग्रहण करते हैं। फिर दूसरे दिन व्रती दिन भर उपवास कर शाम में मिट्टी से बने चूल्हे पर रोटी और चावल तथा गुड़ का सेवन करते हैं, इसके बाद केले के पत्ते पर भोजन को रखकर पूजा प्रार्थना के साथ व्रत खोला जाता है। तीसरे दिन दिनभर उपवास पर रहते हुए पूजा के लिए आटा और गुड़ से ठेकुआ बनाया जाता हैं। बांस से बने सूप में फल मिठाई और ठेकुआ आदि को सजाकर गंगा घाट जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। फिर चौथे  दिन इन्हीं सब फलों से उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं । तथा सूर्य देव से अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते है। साथ ही यह पूजा खासकर माताएं पुत्र प्राप्ति तथा पुत्र की लंबी आयु के लिए भी करती हैं। इसके पश्चात  व्रती अपना व्रत खोलती हैं।
 

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