नई दिल्ली : देश के कई राज्य इस समय कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। देश में छाए कोयला संकट का एक कारण आयातित कोयला महंगा होना भी बताया जा रहा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2021 में आयातित कोयले की कीमत 4200 रुपये टन थी लेकिन सितंबर अक्टूबर में यह 11520 रुपये प्रति टन हो गई थी, इससे भी कोयला संकट बढ़ा और बिजली उत्पादन लड़खड़ा गया।
वहीं, इन सबके बीच केंद्र सरकार ने जानकारी दी है कि राज्यों के पास कोल इंडिया का करीब 20 हजार करोड़ रुपये बकाया है। जानकारी के अनुसार इनमें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु बड़े डिफॉल्टर के रूप में हैं।
कोयला मंत्रालय के अनुसार महाराष्ट्र पर 3176 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश पर 2743 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल पर 1958 करोड़ रुपये, वहीं तमिलनाडु और राजस्थान पर क्रमश: 1281.7 करोड़ रुपये और 774 करोड़ रुपये बकाया हैं। कोयला मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और राजस्थान को पत्र लिखकर उनसे बकाया चुकाने को कहा है।
कोयला मंत्रालय की और से कहा गया कि झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कोयले की खदानें हैं. लेकिन इनमें या तो खनन बिलकुल नहीं किया गया और या तो कम किया गया। ऐसे में संकट गहरा गया है।
जबकि, कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि ताप बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति मंगलवार को सामूहिक रूप से 20 लाख टन को पार कर गई है, उन्होंने दावा किया कि बिजलीघरों को कोयले की आपूर्ति बढ़ाई गई है।
इधर, कोयला संकट के बीच यह भी बात सामने आई है कि कोयला मंत्रालय की ओर से राज्यों को फरवरी में ही पत्र लिखकर कोयले का भंडार रखने और आवंटन वाला कोयला सुचारू रूप से उठाने को कहा गया था, यह भी कहा गया है कि अधिक रकम बकाया होने के बावजूद राज्यों को कोयले की आपूर्ति जारी रखी गई।