Report: तालिबान का पाकिस्तानी कनेक्शन:- प्रदीप पाण्डेय

Report: तालिबान का पाकिस्तानी कनेक्शन:- प्रदीप पाण्डेय

द लोकनीति डेस्क 
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर नाटकीय ढंग से फतह हासिल करने के बाद तालिबान संगठन के लड़ाकों के हौसले बुलंदी पर हैं।

जिस तेजी से पिछ्ले कुछ ही हफ्तों में अमेरिकी सेना को पीछे हटने और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति को रातों रात जहाज से भागने पर मजबूर होना पड़ा उससे यह स्पष्ट है कि तालिबान संगठन को रोकने के लिए पिछ्ले 20 सालों में अमेरिकी सेना द्वारा अफगानी सेना को दिया सैन्य प्रशिक्षण नाकाफी था ?

3 लाख अफगानी सेना के मुक़ाबले 75 हजार तालिबानियों का संगठन आखिर कितने अत्याधुनिक हथियारों और प्रशिक्षण से लैस था ? क्या इस पूरे घटनाक्रम में और उससे पहले से तालिबान को किसी बाहरी अंतरराष्ट्रीय ताकत द्वारा मदद दी जा रही थी ?

तालिबान को विश्वसनीय बताते हुए पिछ्ले कुछ हफ्तों में जिस तरह चीन, रूस, सउदी अरब, यूएई और पाकिस्तान ने अपना समर्थन दिया है उससे भारत सकते में है। यहां तक कि अब तो अमेरिका भी तालिबान के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर स्टैंड लेने का इच्छुक दिख रहा है।

कनाडा के एक पूर्वमंत्री क्रिस एलकजेंडर ने पाकिस्तान के ऊपर यह आरोप लगाते हुए एक ट्वीट किया है –

“Taliban fighters waiting to cross the border from Pakistan to Afghanistan… anyone still denying that Pakistan is engaged in an 'act of aggression' against Afghanistan is complicit in proxy war and war crimes,” Alexander tweeted on Saturday

हालांकि अशरफ गनी के भागने और काबुल पर तालिबानियों के कब्जे के बाद पाकिस्तान ने खुलकर तालीबान के पक्ष में अपना समर्थन सार्वजनिक भी कर दिया है।

भारतीय इंटेलिजेंस के एक पूर्व अधिकारी वी एन राय कहते हैं कि “युद्ध में रिप्लेनिशमेंट एक महत्वपूर्ण फैक्टर है, 70 से 80 हज़ार तालिबान मिलटेंट्स को गोला बारूद हफ्तों तक आखिर कहां से मिल रहा था ? जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान से। अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच करीब 2500 किलोमीटर का बॉर्डर लाईन है जहां से उन्हें हथियारों की सप्लाई आसानी से दी जा रही थी। पाकिस्तान जैसे आर्थिक तंगहाली में फसें मुल्क के लिए उन्हें मुफ़्त में हथियार देना मुमकिन नहीं है, स्वयं तालिबान पाकिस्तान को हथियार की खरीद फरोख्त के लिए पैसे देता था. 
गौरतलब है कि तालिबान नारकोटिक्स और टैक्स के जरिए अकूत संपत्ति हासिल करता रहा है।”

वी एन राय आगे बताते हैं कि तालिबान पिछ्ले 20 सालों से अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों से संघर्ष कर रहा था, ऐसे में तालिबानी लड़ाकों को “रेस्ट, रिलीफ और रिक्युपरेशन अर्थात आरोग्य लाभ की जगह भी पाकिस्तान अपनी धरती पर ही उन्हें मुहैया कराता था। बाकायदा तालिबान के कई कमांडर के परिवार पाकिस्तान में रहते थे जहां वह आराम से जीवन व्यतीत करते थे और आदेश मिलने पर फिर सीमा पार कर युद्व में शामिल हो जाते थे. 

तालिबान और पाकिस्तान की यह नजदीकियां सीधे तौर पर भारत के लिए एक चिंता का विषय हैं। एशिया में घटित होते इस पूरे घटनाक्रम में फिलहाल भारत ने अभी तक अपनी चुप्पी साध रखी है। जबकि पिछले 20 सालों में भारत ने अफ़गानिस्तान में सड़क से लेकर संसद बनाने तथा दुसरे कई पाइपलाइन प्रोजेक्ट्स में अबतक 3 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश कर रखा है।

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय निवेश एवम प्रोजेक्ट्स के चलते क़रीब 1700 भारतीय लोग अभी वहां फसे हुए हैं जिनमे से 130 भारतीय नागरिकों को वापस लाया जा चुका है। चार काउंसलेट और एकमात्र इंडियन एंबेसी को वहां बंद किया जा चुका है। फिलहाल अफ़ग़ानिस्तान से सभी कमर्शियल फ्लाइट्स की उड़ानों पर भी रोक लगा दी गई है।

हालांकि तालिबान प्रवक्ताओं द्वारा अभी तक भारत के विरुद्ध ऐसा कोई भी शब्द नही बोला गया है जिससे भारत सरकार जल्दबाजी में कोई कदम लेने पर मजबूर हो।

अब देखना यह है कि भारत अपने मित्र राष्ट्र अमेरिका या अपने सहयोगी राष्ट्र रूस में से किसके साथ इस तालिबान 2.0 के साथ अपनें निवेश को सुरक्षित रखेगा ?

क्या भारत तालिबान को विश्वसनीय मानेगा और अपनी मान्यता देगा ?

प्रदीप पाण्डेय

(यह लेखक के निजी विचार हैं। वे उदय वेलफ़ेयर फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हैं।)

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