मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री देते हैं झूठा दिलासा, अतिथि विद्वानों का अब तक नियमितीकरण नहीं

मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री देते हैं झूठा दिलासा, अतिथि विद्वानों का अब तक नियमितीकरण नहीं

 

 भोपाल/गरिमा श्रीवास्तव :- प्रदेश की भाजपा सरकार में ही शासकीय महाविद्यालयों में कार्य करने वाले उच्च शिक्षित अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण 11 माह के इंतजार के बाद भी नहीं किया गया है। हर बार इनकी समस्या का शीघ्र हल निकालने की बात प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव इनके द्वारा ज्ञापन देते समय और मिलने पर कहते हैं। लेकिन अब भी इनको अपने सुरक्षित भविष्य का इंतजार है।
 इनको पिछली कमलनाथ सरकार ने दिसंबर 2019 में फाॅलेन आउट किण था। इनके पदों पर विवादास्पद सहायक प्राध्यापक भर्ती 2017, ग्रंथपाल और कीड़ा अधिकारी की नियुक्ति करके इनका रोजगार छीन लिया था। लेकिन उस समय इनकी हमदर्द बनी वर्तमान भाजपा सरकार ने अब तक 600 लोगों को सिस्टम में नहीं लिया है। जिससे बेरोजगार अतिथि विद्वान आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान चल रहे हैं।
वहीं इनके मुद्दे पर सड़क पर उतरने वाले और इनकी तलवार और ढाल बनने वाले वर्तमान राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया से अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. सुजीत सिंह भदोरिया ने सोमवार को ग्वालियर में अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण करने और फाॅलेन आउट को व्यवस्था में लेने के लिए ज्ञापन अपनी टीम के साथ सौंपा। जहां पर बातचीत में ज्योतिराज सिंधिया ने कहा कि, आपका मुद्दा मुझे ध्यान है, मैंने सीएम साहब से इस संबंध में चर्चा कर ली है। आप सभी की समस्या का समाधान शीघ्र ही हो जाएगा।
परंतु अतिथि विद्वानों ने ऐसे ज्ञापन कई बार ज्योतिराज सिंधिया को दिए हैं। उस समय भी इन्हें केवल आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला हैं। वहीं प्रति सप्ताह फाॅलेन आउट की भर्ती के  कई चरण निकल चुके हैं, फिर भी इनका दर्द दूर नहीं हुआ है। उल्टा इनके पदों पर कोर्ट के माध्यम से कई नवीन अभ्यर्थियों को बगैर अनुभव के भी सीधे मेरिट के आधार पर ले लिया गया है। जब इस संबंध में उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अतिथि विद्वान फोन या अन्य माध्यम से बातचीत करते हैं तो इन्हें जवाब में न्यायालय का आदेश मानने की बात कहते हैं। जबकि एमपी पीएससी से हुई नियमित भर्ती पर कई मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन थे, परंतु उन सबको नजरअंदाज करके पूर्व कमलनाथ सरकार ने नियुक्ति दे दी थी। आखिर उस समय कोर्ट के नियमों को क्यों नहीं माना गया था। यह विचारणीय प्रश्न है।
 अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी ने इस बारे में बताया है कि, अतिथि विद्वानों के भविष्य के साथ राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। जिसके कारण हमारा जीवन बर्बाद हो चुका है। पहले तो कई वर्षों तक नियमित भर्ती का आयोजन नहीं किया गया और जब एक बार किया गया तो उसमें भी अतिथि विद्वानों को 5 प्रतिशत बोनस अंक देकर सरकार ने छुटकारा पा लिया था। अब तो सरकार को हम पर दया करना चाहिए। अधिक उम्र के मोड़ पर अब हम कहां जाएंगे।

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