भोपाल : आयुषी जैन : भोपाल के जंगल में 18 बाघ हैं। ये तो वन विभाग की गिनती में हैं। इनके अलावा औबेदुल्लागंज, सीहोर और रायसेन के जंगल से भी बाघों का आना-जाना लगा है। इनकी आबादी बढ़ती जा रही है। इन्हें जंगल के भीतर शिकार के लिए हिरण, चीतल जैसे वन्यप्राणी नहीं मिल रहे हैं। नीलगाय भी गिने-चुने हैं इसलिए ये शिकार की आड़ में शहर तक पहुंच रहे हैं। आने वाले सालों में ये घटनाएं बढ़ेंगी। बाघ और मानव के बीच आपसी संघर्ष की नौबत आएगी। दोनों को नुकसान पहुंचेगा।
राजधानी के जंगल में शुरू से बाघ रहे हैं। पूर्व में ये आबादी के आसपास नहीं दिखते थे। अब अंदर तक आ रहे हैं। 25 व 26 जनवरी की रात एक बाघ कोलार रोड स्थित भोज विवि के कैंपस में आ गया था। गनीमत रही कि वह बिना जनहानि किए लौट गया। वन्यप्राणी विशेषज्ञ इन घटनाओं को असामान्य मान रहे हैं। उनका कहना है कि सभी कारणों में एक कारण जंगल के भीतर शाकाहारी वन्यप्राणियों की कमी होना भी है। जिसके कारण बाघ, तेंदुए शहर के अंदर तक पहुंच रहे हैं।
पूर्व पीसीसीएफ की सलाह पर अमल नहीं
पूर्व पीसीसीएफ वन्यप्राणी विभाग जीतेंद्र अग्रवाल ने दो साल पहले भोपाल सीसीएफ को सलाह दी थी कि जंगल के अंदर घास के मैदान विकसित करें। उसके बाद सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से शाकाहारी वन्यप्राणी हिरण, चीतल लाकर छोड़े। अभी तक यह काम नहीं हुआ है।
नहीं सुधरे तो, बाघ-मानव के बीस संघर्ष तय
वन्यप्राणी विशेषज्ञ एके बरोनिया कहते हैं कि जंगल में 18 बाघ हैं। दो शावक इनमें शामिल नहीं हैं। आए दिन नए बाघ भोपाल के नजदीक पहुंच रहे हैं। इनकी आबादी और बढ़ेगी। ऐसे में इन्हें अधिक व सुरक्षित जंगल की जरूरत होगी, जो कि संभव नहीं है। जंगल का रकबा 25.33 वर्ग किलोमीटर कम हुआ है।
अवैध कब्जे, पट्टे देने की प्रथा बंद नहीं की तो रकबा और घटेगा। ये कमियां नहीं सुधारी तो आने वाले सालों में बाघ बाहर निकलेंगे और बाघ-मानव के बीच संघर्ष की घटना होगी। दोनों को नुकसान होगा।
हम आपको बता दें, बाघ जहां आ रहे हैं उन क्षेत्रों में पहले घना जंगल था। अब आबादी बस गई है इसलिए बाघों का आना नया नहीं है। वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि हम बाघों के रहवास तक पहुंचे हैं, वे शहर में नहीं आ रहे हैं।