अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करने के बाद भर्ती करे सरकार

भोपालआने वाले समय में सूबे की सियासत गर्म होने वाली है,अस्थाई कर्मचारियों ने लामबंदी शुरू कर दी है,इनकी मांग है की वर्षों से विभिन्न विभागों में सेवा देने के बाद भी आज तक भविष्य सुरक्षित नहीं हो पाया। इसी मुद्दे पर महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान महासंघ ने सरकार से गुहार लगाते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी की है साथ ही मांग की है की अनिश्चित भविष्य आर्थिक बदहाली के बावजूद रिक्त पदों के विरुद्ध वर्षों से महाविद्यालय में सेवा दे रहे हैं अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करने के बाद ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नई भर्ती पीएससी के बारे में सोचे। जैसा की कई बार उच्च शिक्षा मंत्री का बयान आया की पीएससी निकाल रहे हैं नई भर्ती करेंगे। इसी से खफा होकर अतिथि विद्वान महासंघ ने बयान जारी किया।

महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ देवराज सिंह ने कहा की आज पूरा प्रदेश जानता है कि अतिथि विद्वान ही कॉलेज को संचालित कर रहे हैं। चपरासी से लेकर प्राचार्य तक के प्रभार अतिथि विद्वानों के पास रहते हैं।लेकिन जब भी लाभ देने की बात आती है तो अतिथि विद्वानों को नजरंदाज किया जाता है। आज अतिथि विद्वान उम्र के उस पड़ाव में आ गए हैं कि अब पीछे जाना उनके लिए संभव नहीं है।सरकार एक प्रस्ताव पारित कर कैबिनेट से विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करे।क्योंकि मुख्यमंत्री अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण के फेवर में शुरू से ही थे खुद उन्होंने वादा किया था।

उच्च शिक्षा में पीएससी भर्ती को लेकर खफा हुए अतिथि विद्वान

वर्तमान में सरकार के सामने बड़ी चुनौतीयां आने वाली है,अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण की मांग लंबे अरसे से जारी है लेकिन आज तक इनकी मांग पूरी नहीं हुई। अतिथि विद्वानों के साथ सियासत भी खूब हुई पर ये अतिथि के अतिथि ही रह गए। अब नया विवाद फिर आ गया पीएससी भर्ती को लेकर।

वहीं, इस मामलें में अतिथि विद्वान महासंघ के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने कहा कि नैक, रुसा, प्रवेश, परीक्षा, प्रबंधन, अध्यापन, मूल्यांकन आदि समस्त कार्य अतिथि विद्वान ही करते हैं लेकिन सरकार अतिथि विद्वानों को नियमित करने के बजाय नई भर्ती को सोच रही है जो की बेहद गंभीर मामला है। अतिथि विद्वानों की मांग है की सरकार भविष्य सुरक्षित कर वादा पूरा करे।रिक्त पदों के विरुद्ध वर्षों से उच्च शिक्षा विभाग को अतिथि विद्वान ही संभाल रहे हैं फिर विद्वानों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों, पिछली 2017 की पीएससी का विवाद आज भी नहीं सुलझा है जबकि मध्य प्रदेश के मूल निवासी ही है अतिथि विद्वान उनकी ओर सरकार का ध्यान क्यों नहीं??

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