भोपाल। सनातन धर्म में शिव और शक्ति की साधना का विशेष महत्व बताया गया है। देश के कोने कोने में शिवरात्रि की धूम देखने को मिलते हैं। साथ ही महाकाल की नगरी उज्जैन में शिव नवरात्र का विशेष महत्व है। फाल्गुन कृष्ण पंचमी से त्रयोदशी तक नौ दिन विशिष्ट साधना के हैं। शिव महापुराण में शिव नवरात्र के नौ दिनों में साधना के लिए योग व नक्षत्रों का महत्व बताया गया है। विशिष्ट योग व नक्षत्र में साधना करने से भक्तों को शुभफल की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार भारतीय ज्योतिष शास्त्र में योग व नक्षत्र का विशेष महत्व है। शिव महापुराण के अनुसार विशेष नक्षत्र में की गई साधना का महान पुण्य का फल बताया गया है। लेकिन 9 दिन में 9 नक्षत्रों के अधिपति की साक्षी में किन-किन की साधना करनी चाहिए यह जानना बेहद जरूरी है। तो आइये बताते हैं कि इस बार शिवरात्रि में आपको साधने में किन बातों का खास ध्यान रखना है। जानिए
- प्रथम दिवस: वृद्धि के लिए हस्त नक्षत्र में आदित्य ह्रदय स्तोत्र के साथ शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- द्वितीय दिवस: चित्रा नक्षत्र अधिपति विश्वकर्माविष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ व शिवाष्टक का संयुक्त अनुष्ठान करना चाहिए।
- तृतीय दिवस : स्वाति नक्षत्र अधिपति वायु देवहनुमान वडवानल स्तोत्र तथा शिव स्तोत्र का पाठ करें।
- चतुर्थ दिवस : विशाखा नक्षत्र अधिपति शक्राग्निदत्तात्रेय स्तोत्र व रुद्राष्टक का पाठ करें।
- पंचम दिवस : अनुराधा नक्षत्र स्वामी मित्रशिव पंचाक्षर मंत्र का यथा श्रद्धा जाप करें।
- षष्ठम दिवस : जेष्ठा नक्षत्र अधिपति इंद्रमहालक्ष्मी अष्टक व शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें।
- सप्तम दिवस : मूल नक्षत्र अधिपति नैऋतिमहामृत्युंजय स्तुति यथा श्रद्धा पाठ करें।
- आठवां दिन : पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र अधिपति जलदेवअभिषेकात्मक रुद्राभिषेक करना चाहिए।
- नवां दिन : उत्तराषाढा स्वामी विश्व देवामहा विष्णु महा शिव के संयुक्त उपासना में जपात्मक हवनात्मक अनुष्ठान वैदिक व बीजोक्त मंत्र के साथ करना चाहिए।
इस तरह उपासना करने से शिव जल्द ही भक्तों पर प्रसन्न होकर उनको मनोकामना पूरी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार शिव साधना का विशेष महत्व होता हैं। सच्चे मन से शिव आराधना करने पर मंगल मनोकामना पूर्ण होती है।