भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ती जा रही है। कभी वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बीच मतभेद सामने आते हैं, तो कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और नाथ के बीच दूरियां दिखाई देती हैं। साथ ही मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर प्रश्न उठते हैं तो कांग्रेस की कार्यकारिणी के गठन के बाद कार्यकारी अध्यक्षों को लेकर बात उठती है। जीतू पटवारी जहां अभी भी कार्यकारी अध्यक्ष पद नाम का उपयोग कर रहे हैं। जबकि, नई कार्यकारिणी में इसका उल्लेख नहीं है। उधर, पटवारी को विधानसभा के बजट सत्र से निलंबित करने के बाद अध्यक्ष गिरीश गौतम के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव तो दिया गया पर जिस तरह आक्रामक होकर पार्टी को दबाव बनाना था, वह नहीं बनाया गया। इससे भाजपा को कांग्रेस को घेरने का मौका तो ही मिला ही, यह संदेश भी गया कि तमाम दावाें के बाद भी पार्टी में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए अभियान चलाया। इस पर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने ही यह कहते हुए सवाल उठा दिया कि पार्टी में मुख्यमंत्री को चेहरा घोषित करने की परंपरा नहीं है। चुनाव के बाद विधायक दल प्रस्ताव पारित करता है और केंद्रीय नेतृत्व अंतिम निर्णय लेता है। भाजपा ने इसे अंतर्कलह से जोड़ते हुए सवाल खड़े किए और अंतत: पार्टी ने कमल नाथ को भावी मुख्यमंत्री बताना बंद कर दिया।