हरियाणा : किसान आंदोलन का दिखा असर, 7 में से 5 में भाजपा-जजपा हारी, मेयर पद भी गंवाया, भाजपा खेमे में फैला सन्नाटा
हरियाणा : किसान आंदोलन का दिखा असर, 7 में से 5 में भाजपा-जजपा हारी, मेयर पद भी गंवाया, भाजपा खेमे में फैला सन्नाटा
- विनोद शर्मा- अम्बाला में पत्नी की जीत के बाद पूर्व मंत्री विनोद शर्मा सियासत में फिर सक्रियता बढ़ा सकते हैं.
- पंचायत चुनाव: फरवरी-मार्च में पंचायत चुनाव हो सकते हैं, उनमें निकाय चुनाव के नतीजों का असर दिख सकता है.
हरियाणा/ राजकमल पांडे। बुधवार को घोषित 7 शहरी निकायों के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले रहे. भाजपा और जननायक जनता पार्टी (जजपा) गठबंधन को एक करारा झटका लगा है. सत्ता में रहने के बावजूद भी यहां सात निकायों में से केवल दो में ही कमल खिल पाया है. कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बीच यह नतीजे भाजपा के लिए चेताने वाले हैं. व दूसरी ओर देखा जाए तो कांग्रेस गुटबाजी की वजह से सिर्फ एक निकाय में ही जीत हासिल कर पाई है.
पंचकूला में भाजपा की स्थिति
तीनों नगरपालिकाओं के चेयरमैन पद पर निर्दलीयों ने कब्जा किया। इनमें दो पर जजपा और एक पर भाजपा ने गठबंधन में सिंबल पर प्रत्याशी उतारे थे. पंचकूला में भाजपा के कुलभूषण गोयल कांग्रेस से मेयर पद छीनने में कामयाब रहे. अम्बाला में भाजपा को मेयर पद गंवाना पड़ा. वहां पूर्व मंत्री विनोद शर्मा की हरियाणा जनचेतना पार्टी से उनकी पत्नी शक्ति रानी जीती हैं. भाजपा दूसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही.
जीत-हार के प्रमुख वजह
राजनीति के जानकारो की माने तो भाजपा-जजपा गठबंधन की हार में किसान आंदोलन को प्रमुख वजह बता रहे हैं. जहां-जहां चुनाव थे, वहीं आंदोलन का ज्यादा असर है. अम्बाला से आंदोलन शुरू हुआ था सोनीपत में ये अभी चल रहा है। टिकरी बॉर्डर के लिए सांपला से ही जाना पड़ता है। रेवाड़ी में धरने का असर धारूहेड़ा तक है। सिरसा और उकलाना में भी प्रदर्शन चल रहे हैं।
अम्बाला और सोनीपत में शहर के बाहरी इलाकों में ज्यादा और भाजपा की पैठ वाले इलाकों में कम वोटिंग होना भी हार की वजह रही.
अम्बाला में विनोद शर्मा के बड़ा राजनीतिक चेहरा होने का फायदा उनकी पत्नी को मिला। सोनीपत में कांग्रेस से पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पूरी तरह सक्रिय रहे।
पंचकूला के दो में सिर्फ तीन वार्ड ग्रामीण इलाकों से जुड़े हैं. ग्रामीण इलाके के वोट कम मिलने के बावजूद भाजपा को जीत मिली. भाजपा प्रत्याशी की छवि का भी फायदा मिला.
रेवाड़ी में भाजपा को एसवाईएल का मुद्दा उठाने का फायदा बताया जा रहा. नगरपालिकाओं में कांग्रेस सिंबल पर नहीं लड़ी. भाजपा-जजपा गठबंधन की जगह लोगों ने निर्दलीय चुने.
नतीजों के किसके लिए क्या मायने?
भाजपा के लिए- ओपी धनखड़ के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद बरोदा और अब निकाय चुनाव में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. सोनीपत सांसद रमेश कौशिक बरोदा के बाद निकाय चुनाव में प्रभाव नहीं दिखा पाए. अम्बाला में असीम गोयल बेअसर रहे। अब सरकार जनहित के बड़े फैसले ले सकती है.
कांग्रेस- प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा अपने संसदीय क्षेत्र रहे अम्बाला और पंचकूला में जीत नहीं दिला सकीं. पार्टी चौथे नंबर पर रही रेवाड़ी-धारूहेड़ा से विधायक चिरंजीव राव बेअसर रहे. पूर्व सीएम हुड्डा सोनीपत में ताकत दिखाने में कामयाब रहे. इससे कार्यकर्ताओं में उत्साह आएगा.
जजपा- दोनों नगरपालिकाओं में हार मिली. राज्य मंत्री अनूप धानक के इलाके उकलाना में चेयरमैन पद गंवाया. पार्टी घोषणापत्र के वादे पूरा करने का दबाव बना सकती है.
दो साल पहले भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था
दो साल पहले हुए पांच नगर निगमों- यमुनानगर, करनाल, रोहतक, हिसार और कुरुक्षेत्र में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। हाल ही में नवंबर के पहले सप्ताह में हुए बरोदा उपचुनाव में भी भाजपा-जजपा हार गई थी और कांग्रेस की जीत हुई थी। इसके तुरंत बाद 7 शहरी निकायों में चुनाव हुए। मौजूदा गठबंधन सरकार के कार्यकाल के 4 साल बाकी होने के बावजूद उसे सिर्फ दो निकायों में ही जीत मिली।